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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २७३ चोर, जो था मन का मोर भाव भी जान लूँगा... बाद में ही राज खोलूँगा। विलंब नहीं करना है... कल ही मैं अपने रूप में... अपने सच्चे रूप में प्रगट हो जाऊँगा...।' __मेरा सच्चा रूप... मेरी वास्तविकता जानकर गुणमंजरी को कितना आश्चर्य होगा? वह स्तब्ध हो जाएगी! महाराजा, महारानी... सारा राजपरिवार आश्चर्य के सागर में डूब जाएगा! नगर में कितना कौतूहल फैलेगा। सभी लोगों के दिल में कितने तरह के सवाल उठेंगे... उन सब का उचित एवं उपयुक्त समाधान भी करना होगा। हालाँकि, समाधान करते समय पूरी सावधानी रखनी होगी। महाराज से तो यक्षद्वीप की घटना कहनी होगी, पर गुणमंजरी से तो बिलकुल नहीं कही जा सकती! क्या पता उसे अमरकुमार के प्रति अभाव या वितृष्णा पैदा हो जाए तो? उसके साथ शादी करने से इन्कार ही कर बैठे तो?' विमलयश अपने कमरे में चला गया। इधर अमरकुमार आशा के तंतुओं में बन्धा हुआ अपने कमरे में पहुँचा। कई तरह से विचार आ-आकर उसे घेरने लगे। __'सवा सेर घी... इस राजा के पैरों के तलवे में मलना है। क्या इतना घी इसके पैरों में उतर जाएगा? उसने पैर दिखने में तो कितने मृदु हैं... कौमल हैं... और यदि घी इसके पैरों में नहीं उतर पाया तो? यदि उतर जाए तो, तो मुक्ति हो जाएगी... और किसी भी जहाज़ में बैठकर वापस चंपानगरी पहुँच जाऊँगा! फिर से व्यापार करके धन कमा लूँगा। और व्यापार नहीं करूँ तो भी चलेगा। पिताजी के पास ढेरों संपत्ति है... सब आखिर मेरी ही है न?' ___ मालती ने भोजन के थाल लेकर कमरे में प्रवेश किया। अमरकुमार को खाने की रूचि ही नहीं थी। उसने भोजन करना अस्वीकार किया। ___ 'भोजन तो कर लो भाई, भाई... सुखदुःख तो आते-जाते हैं... जैसे करम किये हो वैसे फल तो भुगतने ही पड़ते हैं!' । अमरकुमार के दिल पर मालती के शब्द तीर बनकर चुभ रहे थे, पर उसने बरबस सुन लिया। उसका दिल दो-टूकड़े हुआ जा रहा था। दिल पर पत्थर रखकर उसने थोड़ा सा भोजन कर लिया। मालती चली गयी। अमरकुमार वहीं ज़मीन पर लेट गया। उसे नींद आ गयी। जब वह जगा तो साँझ ढलने को थी। शाम को उसने केवल दूध ही पिया । और विमलयश के संदेश की प्रतीक्षा में बैठा रहा। For Private And Personal Use Only
SR No.009637
Book TitlePrit Kiye Dukh Hoy
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages347
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size2 MB
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