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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org करम का भरम न जाने कोय २६९ 'जहाज़ों का सारा माल मेरे राजमहल में रख दो । जहाज़ों के आदमियों को ठीक ढंग से रखना । वे लोग तो बेचारे निर्दोष और निरपराधी हैं... पर उन्हें रखने हैं अपने अधिकार में ! ' 'इस चोर का क्या करना है?' ‘उसे मैं सम्हाल लूँगा!' Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मृत्युंजय ने विमलयश की आज्ञा के अनुसार जहाज़ों का माल सारा का सारा विमलयश के महल के भूमिगृह में लाकर रख दिया। जहाज़ों को किनारे पर लंगर डाल कर बाँध दिया। जहाज़ के आदमियों के लिए रहने की भोजन की सारी व्यवस्था करके उन्हें पहरे में रख दिया । विमलयश ने मालती को बुलाकर कहा : 'मालती, एक मेहमान आये हैं। उनके भोजन वगैरह की व्यवस्था तुझे करनी है... चल, मेरे साथ तुझे मेहमान का कमरा दिखा दूँ !' विमलयश ने मालती को अमरकुमार का कमरा दिखा दिया। हालाँकि मालती समझ तो गयी थी कि यह मेहमान गुनहगार है। परंतु उसने विमलयश से 'कौन है? कहाँ से आये हैं... क्या नाम है?' वगैरह पूछना उचित नहीं माना। शाम के समय मालती ने अमरकुमार के कमरे में जाकर पानी और भोजन रख दिया। सोने के लिए बिछौना बिछा दिया। फिर एक निगाह से अमरकुमार को देखा 'लगता तो है किसी बड़े खानदान का युवक ... क्या पता! क्या अपराध किया होगा इसने ? मौनरूप से काम निपटाकर मालती चल दी। विमलयश गुणमंजरी के पास गया। गुणमंजरी ने खड़े होकर विमलयश का स्वागत किया। उसने विमलयश को प्रफुल्लित देखा... वह शरमा गयी.... वह समझ रही थी 'अब प्रतिज्ञा पूर्ण होने में केवल तीन दिन का समय शेष है... इसलिए विमलयश काफी खुश-खुश नज़र आ रहा है। 'देवी, तुम तीन दिन अब पिताजी के घर पर जाकर रहो, तो ठीक होगा!' 'पर क्यों?' गुणमंजरी चौंक उठी । 'यह मन बड़ा चंचल है न? शायद कोई गलती कर बैठे तो ? प्रतिज्ञा अच्छी तरह पूरी हो जाए फिर चिंता नहीं ! ’ गुणमंजरी का चेहरा शरम से लाल-लाल हो गया। उसने विमलयश की आज्ञा, बिना कुछ दलील किये, मान ली... मालती को यथायोग्य सूचनाएँ देकर गुणमंजरी अपने पिता के महल पर चली गयी। For Private And Personal Use Only
SR No.009637
Book TitlePrit Kiye Dukh Hoy
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages347
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size2 MB
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