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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुर और स्वर का सुभग मिलन २६३ कोकिल कंठ का स्वरमाधुर्य घुलने लगा...! दोनों के प्राण स्वरसरिता में गहरे डूब गये। रोजाना रात को इसी तरह स्वर्णदीपकों के सुहावने मद्धिम प्रकाश में वीणावादन होता रहता है...। दोनों की आत्मा का अद्वैत भाव गाढ़ बनता है। बाद में दोनों पद्मासनस्थ बनकर श्री नवकार मंत्र के ध्यान में लीन बनते हैं... कभी विमलयश गुणमंजरी को श्री नवकार मंत्र का प्रभाव स्पष्ट करनेवाली कहानियाँ सुनाता है...| गुणमंजरी भावविभोर होकर कथामृत का पान करती कभी विमलयश गुणमंजरी को दार्शनिक सिद्धांतों को समझाता है। जीवन के रहस्यों को खोलकर बताता है...। अनंत-असीम जीवन की बातें सुनकर गुणमंजरी प्रसन्न हो उठती है। धीरे-धीरे गुणमंजरी दार्शनिक बातों का चिंतन करती है। दिन गुज़रते हैं, दरिये पर से गुज़रती लहरों की भाँति। विमलयश को श्रद्धा है : एक महिना पूरा होते अवश्य अमरकुमार को आ पहुँचने चाहिए। उसका दिल, उसका हृदय श्रद्धा को हार नहीं गया था। उसे विश्वास था : 'मेरा सतीत्व विजेता बनकर रहेगा' महीने में केवल तीन दिन ही शेष रहे। गुणमंजरी के हृदय में प्रेम का ज्वार उफनने लगा है। विमलयश की निगाहें दूर-दूर अमरकुमार को खोज रही है। उसका अतःकरण उसे आश्वस्त बनाता है। उसकी वामचक्षु स्फुरायमान होने लगी हैं... उसका दिल अव्यक्त आनंद में डूबा जा रहा है। राजमहल के झरोखे में बैठा हुआ विमलयश राजसभा में जाने के लिए खड़ा हुआ | नवकार मंत्र का स्मरण किया और राजमहल के सोपान उतरने लगा। इतने में सामने से सौभाग्यवती स्त्रियों का आगमन से शुभ शकुन का हुआ। शुभ शकुनों से प्रसन्न चित्त होकर विमलयश राजसभा की तरफ चला। For Private And Personal Use Only
SR No.009637
Book TitlePrit Kiye Dukh Hoy
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages347
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size2 MB
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