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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६१ सुर और स्वर का सुभग मिलन राजपुरोहित ने मंत्रोच्चार प्रारंभ किये। विमलयश और गुणमंजरी की निगाहें मिली। विवाह मुहूर्त आ पहुँचा था। राजकुमारी ने विमलयश के गले में वरमाला पहना दी। शादी की विधि पूरी हुई। गुणमंजरी के साथ विमलयश अपने महल में आया । गुणमंजरी की परिचारिकाएँ पहले ही से विमलयश के महल पर पहुँच गई थीं। परंतु मुख्य परिचारिका तो मालती ही थी। भोजन वगैरह से निवृत्त होकर जब गुणमंजरी ने शयनकक्ष में प्रवेश किया तब पलभर के लिए वह ठिठक गयी... उसे आश्चर्य हुआ! शयनकक्ष में दो पलंग सजाकर रखे गये थे...। वह ज्यादा कुछ सोचे इसके पहले तो विमलयश ने कक्ष में प्रवेश किया। गुणमंजरी का चेहरा शरम से लाल टेसूसा निखर आया। उसकी पलकें नीचे ढल गयीं...। एक मौन मधुर अनुभूति के अव्यक्त आनंद में गुणमंजरी डूब गयी। वह भावविभोर होती हुई... खुशी की चादर में अपने आपको समेटती हुई पलंग के किनारे पर जाकर बैठ गयी। विमलयश सामने के पलंग पर जाकर बैठा। गुणमंजरी ने सवाल भरी निगाह से विमलयश की ओर देखा विमलयश की आँखों में से स्नेह छलक रहा था...। उसके चेहरे पर स्मित अठखेलियाँ कर रहा था। उसने मौन के परदे को शब्दों से काटते हुए कहा : 'देवी, आश्चर्य हो रहा है न? अजीब-सा लग रहा है न? और किसी कल्पना जगत् में मत जाना। अपने को कुछ दिन इसी तरह गुज़ारने होंगे!' 'पर क्यों?' गुणमंजरी अचानक बावरी हो उठी... वह पलंग पर से उठकर आकर विमलयश के चरणों में बैठ गई...। 'मैंने एक प्रतिज्ञा की थी...!' 'प्रतिज्ञा कब? किसलिए?' 'जब तस्कर तेरा अपहरण कर ले गया था और मैंने तुझे लाने का बीड़ा उठाया था, तब मैंने एक संकल्प किया था कि...' 'काहे का संकल्प?' 'महाराजा ने घोषणा कर दी थी कि, जो कोई व्यक्ति राजकुमारी को ले आएगा उसे मेरा आधा राज्य दूंगा और राजकुमारी की शादी उसके साथ कर दूंगा।' इस तरह तेरी-मेरी शादी तो होगी ही, यदि मैं तुझे सुरक्षित लौटा For Private And Personal Use Only
SR No.009637
Book TitlePrit Kiye Dukh Hoy
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages347
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size2 MB
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