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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५ indi.REIII. Isuzhattar । ३. अपूर्व महामंत्र - REScreencamsarrierrescomsex दूसरे ही दिन सुरसुंदरी साध्वीजी सुव्रता के उपाश्रय में पहुँच गयी। 'मत्थएण वंदामि' कहकर उसने उपाश्रय में प्रवेश किया और साध्वीजी के चरणों में मस्तक झुकाकर वंदना की। 'धर्मलाभ!' साध्वीजी ने दाहिना हाथ ऊंचा करके आशीर्वाद दिया । सुरसुंदरी, साध्वीजी की इज़ाज़त लेकर विनयपूर्वक अपना परिचय देते हुए बोली : 'हे पूज्ये, आपके दर्शन से मुझे अतीव आनंद हुआ है। मेरा नाम सुरसुंदरी है। मेरे पिता राजा रिपुमर्दन हैं। मेरी माँ का नाम है रतिसुंदरी। मेरे मातापिता की प्रेरणा से मैं आपके पास धर्मबोध प्राप्त करने के लिए आयी हूँ | नगरश्रेष्ठी धनावह की धर्मपत्नी धनवती देवी ने मुझे आपका परिचय दिया और आपका स्थान बताया। 'हे पुण्यशीले! धन्य हैं तेरे माता-पिता, जो अपनी पुत्री को चौंसठ कलाओं में पारंगत बनाकर भी उसे धर्मबोध देने की इच्छा रखते हैं और धन्य हैं वह पुत्री जो माता-पिता की इच्छा को सहर्ष स्वीकार कर के धर्मबोध पाने को प्रयत्नशील बनती है। पूर्वकृत महान् पुण्यकर्म का उदय हो तभी कहीं ऐसे संस्कारी सुशील और संतानों के आत्महित की चिंता करनेवाले माता-पिता मिलते हैं और श्रेष्ठ पूण्य कर्म का उदय होने पर ऐसी विनीत, विनम्र और बुद्धिशाली संतान मिलती है। सुरसुंदरी, तू यहाँ नियमित आ सकती है। तुझे यहाँ तीर्थंकर परमात्मा द्वारा कथित धर्मतत्त्वों का बोध मिलेगा।' 'परम उपकारी गुरूमाता, आज मैं धन्य हुई। आपकी कृपा से मैं कतार्थ हुई। आपके पावन चरणों में बैठकर सर्वज्ञ-शासन के तत्त्वों का अवबोध प्राप्त करने के लिए मैं भाग्यशालिनी बन पाऊँगी। आपके इस उपकार को मैं कभी नहीं भूलूँगी। कृपा करके आप मुझे समय का निर्देश दें ताकि आपकी साधनाआराधना में विक्षेप न हो और मेरा अध्ययन हो पायें... आपको अनुकूल हो उस समय मैं रोजाना आ सकूँ।' साध्वीजी ने उसे दोपहर का समय बताया। भावविभोर होकर पुनः वंदना करके सुरसुंदरी अपने महल की ओर चल दी। सुंदरी सीधी पहुँची अपनी माता रतिसुंदरी के पास | साध्वीजी के साथ हुए For Private And Personal Use Only
SR No.009637
Book TitlePrit Kiye Dukh Hoy
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages347
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size2 MB
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