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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir राज्य भी मिला, राजकुमारी भी! २५४ रक्षा करनेवाले कुमार का आभार मैं किन शब्दों में व्यक्त करूँ?' गुणमंजरी का स्वर गद्गद् हो उठा। सभाजनों की आँखें भी खुशी के आँसुओं से भर आयीं। 'कुमार... उस तस्कर का तुमने क्या किया?' 'महाराजा, उसे हम अपने साथ ही ले आये हैं। आपकी सेवा में वह हाज़िर है।' विमलयश ने राजसभा में बैठे हुए तस्कर की ओर इशारा किया । तस्कर खड़ा हुआ... और महाराजा के सामने आकर नतमस्तक होकर खड़ा रहा। __ पलभर के लिए तो सन्नाटा छा गया। पूरी सभा के मुँह से 'अरे!' निकल गया। चूँकि सब ने किसी डरावने भयावह चेहरेवाले दैत्यकार व्यक्ति के रूप में चोर की कल्पना कर रखी थी। जबकि सामने तो सुंदर-सलोने चेहरेवाला युवक खड़ा था। महाराजा भी विस्मय से स्तब्ध रह गये। उन्होंने विमलयश से पूछा : 'कहो कुमार, इस तस्कर को उसके असंख्य अपराधों की क्या सजा 'महाराजा, मेरी आप से एक विनती है।' 'बोलो... बिना कुछ भी झिझक के... तुम जैसा चाहोगे वैसा ही होगा।' 'मेरी आप से प्रार्थना है कि आप तस्कर को अभयदान दे दें!' 'अभयदान... इस दुष्ट को?' सभाजनों की दबी-दबी आवाज़ उभर उठी! 'हाँ, अभयदान! अब से वह चोरी नहीं करेगा। चोरी किया हुआ धन उनके मालिकों को वापस लौटा जाएगा। और वह स्वयं इस राज्य का सेवक बनकर रहेगा।' विमलयश ने तस्कर के सामने सूचित निगाहों से देखा । तस्कर जिसका नाम मृत्युंजय था। उसने महाराजा और विमलयश को प्रणाम करके कहा : 'महाराजा, वास्तव में मैं अपराधी हूँ... मैंने अक्षम्य अपराध किये हैं। सचमुच में वध्य हूँ... परंतु राजकुमार विमलयश ने मुझ पर उपकार करके मुझे अभयदान-जीवनदान दिलवाया है... मैं मृत्युंजय, आज से प्रतिज्ञा करता हूँ कि मैं आपका, राज्य का एकनिष्ठ सेवक बना रहूँगा! आप जो भी सेवा की आज्ञा मुझे करेंगे मैं हमेंशा उसे वफादारी के साथ अदा करूँगा।' 'महाराजा ने विमलशय की तरफ देखा। विमलयश ने कहा : 'महाराजा, मृत्युंजय राज्य का सेनापति होने के लिए योग्य है।' 'अच्छी बात है, मैं मृत्युंजय को सेनापति का पद प्रदान करता हूँ!' For Private And Personal Use Only
SR No.009637
Book TitlePrit Kiye Dukh Hoy
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages347
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size2 MB
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