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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra राज्य भी मिला, राजकुमारी भी ! www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir DAYANMAKAN SAİTİNİN TE ZA TANZ ३७. राज्य भी मिला, राजकुमारी भी...! EZETT Do २४९ गुणमंजरी अचानक विमलयश को सामने उपस्थित हुआ देखकर हर्षविभोर हो उठी। उसके मुरझाये अधरों में मधुर स्मित की कलियाँ खिल उठी! उसने विमलयश को नमस्कार किया। उसके चरणों में गिरती हुई बोली : ' त्वमेव शरणं मम !' विमलयश की रोबील आवाज गुफा में गूँज उठी : ‘रे तस्कर! तू विद्यावान है... बुद्धिशाली है, इसलिए मैं तुझे मार नहीं रहा हूँ। पर तुझे मिली हुई विद्याशक्ति का तू कितना दुरूपयोग कर रहा है ? जो विद्या दूसरों की रक्षा कर सकती है... उसी के जरिए तू औरों को पीड़ा पहुँचा रहा है।' विमलयश के एक ही मुष्टिप्रहार से और लात से चीखता-चिल्लाता चोर ज़मीन पर पड़ा-पड़ा कराह रहा था । उसका हौसला टूट चुका था । अपनी ताकत का उसका गरूर मोम की तरह पिघल चुका था । विमलयश की अजेय ताकत के सामने उसने अपनी हार स्वीकार कर ली ! उसने विमलयश के चरणों में आत्मसमर्पण कर दिया। ‘हम अब जरा भी देर किये बगैर नगर में पहुँचेगे। चूँकि सबेरा हो चुका है, महाराजा जब मुझे अपने महल में नहीं पायेंगे तो अपहरण या हत्या का अनुमान बाँध लेंगे। और शायद कोई अनर्थ भी हो जाए ! कुछ भी अनहोनी हो, इससे पूर्व ही हम पहुँच जाएँ तो अच्छा!' विमलयश ने राजकुमारी और तस्कर से कहा । फिर दोनों को अपने साथ लेकर गुफा में से बाहर निकलकर विमलयश ने बड़ी तेजी से नगर की ओर कदम बढ़ाये। For Private And Personal Use Only इधर महाराज और महारानी सारी रात जागते रहे थे । विमलयश की चिंता से वे दोनों व्याकुल थे। ज्यों उषाकाल हुआ त्यों तुरंत महाराजा गुणपाल स्वयं विमलयश के महल के पास आये ।
SR No.009637
Book TitlePrit Kiye Dukh Hoy
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages347
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size2 MB
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