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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir राजा भी लुट गया २४० कुछ जवाब दे, इससे पहले तो राजमार्ग पर जोर से ढोल-नगारे बज उठे | इसके बाद एक राजपुरूष ऊँची आवाज में घोषणा करने लगा : ___ 'बेनातट के नागरिकों, सुनो! भयंकर जुल्मी चोर राजकुमारी का अपहरण करके उसे उठा ले गया है। कोई वीर पुरूष राजकुमारी को जिंदा वापस छुड़ा लाएगा उसे महाराज अपना आधा राज्य देंगे एवं राजकुमारी की शादी उससे करेंगे।' विमलयश तुरंत एक पल की भी देर किये बगैर महल में से बाहर निकला। घोषणा करनेवाले राजपुरूष के पास जाकर उसने घोषणा स्वीकार कर ली। _ 'जाओ, महाराज से कह दो कि मैं विमलयश, उस नालायक चोर को और मासूम राजकुमारी को कल सवेरे महाराजा के चरणों में हाजिर कर दूंगा।' मालती तो नाच उठी। उसका मन आनंद से भर आया। उसे शत-प्रतिशत भरोसा था कि विमलयश ही यह कार्य कर पाएगा। विमलयश महल में आया । मालती ने विमलयश का स्वागत किया । 'मालती... तू यहीं पर रहना । मैं राजमहल में जा रहा हूँ। महाराजा से भी ज्यादा आश्वासन की ज़रूरत महारानी को है।' __'हाँ... हाँ... कुमार, जाकर महारानी को तुम दिलासा दो, वर्ना रानीसाहिबा का क्या होगा? आखिर माँ हैं वह... गुणमंजरी तो उसको प्राणों से भी ज्यादा प्यारी है... इकलौती बेटी है।' विमलयश त्वरा से सीधा राजमहल में पहुँचा । राजमहल में विमलयश की ही चर्चा थी... महाराजा की घोषणा विमलयश ने स्वीकारी है...' यह जानकर कुछ लोग आश्वस्त हुए थे तो कई लोग डर भी गये थे। विमलयश सीधा अंतःपुर में गया। ___ महारानी बेहोश थी। महाराजा गुमसुम होकर बैठे थे। मंत्रीगण भी स्तब्धसा किंकर्तव्यविमूढ़ होकर बैठे थे। विमलयश ने महाराज को प्रणाम करके कहा : कृपालु, देवता आप धीरज रखें, स्वस्थ बनें... कल सवेरे गुणमंजरी को आपके चरणों में मैं हाजिर कर दूंगा। आप उदासी को दूर करें। महारानी को स्वस्थ बनाए... उन्हें होश में लाएँ।' ___ महाराजा ने विमलयश के सिर पर हाथ फेरते हुए वात्सल्य भरे स्वर में दु:खी होकर कहा : 'नहीं... विमल नहीं... तू परदेशी राजकुमार है, तू उस चोर को पकड़ने का दुःसाहस मत कर| वह चोर कितना जालिम है, मैं जानता हूँ। जो-जो गये, उसे पकड़ने के लिए... वे सब मुँह की खा के आये... For Private And Personal Use Only
SR No.009637
Book TitlePrit Kiye Dukh Hoy
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages347
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size2 MB
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