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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir राजा भी लुट गया २३४ बिठा दिया और खुद नगर के चौराहे पर तंबू गाड़कर बैठे । रात के प्रथम प्रहर में उधर से एक ग्वालिन-निकली सिर पर दही की मटकी उठाए हुए | महामंत्री ने ग्वालिन को बुलाकर पूछा : 'क्या है तेरी मटकी में?' ग्वालिन ने चुपचाप मटकी दिखायी...। महामंत्री ने देखा तो अंदर शराब भरी थी... महामंत्री की जीभ लपलपा गयी। उन्होंने पैसे देकर मटकी ले ली। खुद महामंत्री ने जमकर शराब पी और सैनिकों को भी पिलायी...। थोड़ी देर में सबपर बेहोशी का दौर छाने लगा। शराब में बेहोश करने की दवाई डाली हुई थी। सभी बेहोश हो गये...| ग्वालिन के भेष में रहे उस चोर ने महामंत्री को हथकड़ी पहना दी...| महामंत्री के सारे कपड़े निकाल दिये | मुँह पर महामंत्री के ही जूते रखे। ऊपर से गंदगी की... सब सैनिकों के कपड़े उतारे... और वहाँ से रवाना हो गया। सुबह हुई। महाराजा खुद महामंत्री की तलाश करने निकले। चौराहे पर आये... तंबू में गये... देखा तो महाराजा खुद हँस पड़े थे। साथ के आदमियों ने तुरंत महामंत्री को जगाया... महामंत्री जगे | अपनी दुर्दशा देखकर शरम के मारे नीचा मुँह किये बैठे रहे।' 'मालती, इस चोर ने तो गजब ढा रखा है।' 'यही बात कर रही हूँ न तूम से। महाराजा को बड़ी भारी चिंता हो रही है...। मुझे तो लगता है... अब महाराजा स्वयं ही उस चोर को पकड़ने के लिए निकलेंगे और तब तो चोर पर कयामत आयी समझो।' _ 'इस चोर को बुद्धिबल से ही पकड़ा जा सकता है...। या फिर विद्याशक्ति से । बाकी मुकाबला करके ऐसे चोर को पकड़ना नामुकिन है। ठीक है... अब तू सो जा, रात बहुत बीत चूकी है...।' 'और तुम वीणा बजाओगे?' 'वीणा बजाने का तो शौक लग चुका है।' 'तुम्हें बजाने का शौक लगा हैं... उधर उस राजकुमारी को सुनने का शौक लगा हुआ है न | क्या जोड़ी मिली है!' मालती मुँह में आँचल दबाती हुई अपने कमरे में दौड़ गयी...!!! For Private And Personal Use Only
SR No.009637
Book TitlePrit Kiye Dukh Hoy
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages347
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size2 MB
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