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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नयी कला-नया अध्ययन 'माँ, शायद इसे दीक्षा-वीक्षा लेने का इरादा जगा होगा?' अमरकुमार बोला, तीनों हँस पड़े। 'दीक्षा लेने का भाव जग जाए तो मैं अपना परम सौभाग्य मानूं | संसार के प्रति वैराग्य आना कोई सरल बात थोड़े-ही है?' सुरसुंदरी गंभीर होकर बोली। ___'साध्वीजी के पास जाने से और धर्मबोध पाने से दुर्लभ वैराग्य भी सुलभ हो जाएगा।' अमरकुमार के शब्दों में अभी भी हँसी का लहज़ा था। _ 'यदि सुलभ हो गया... तब तो संसार का त्याग करने में विलंब नहीं करूँगी... इस मानव जीवन की सफलता उसी में तो है।' "तो फिर इतनी देर-सारी कलाएँ क्यों सीखीं? पहले ही से साध्वीजी से शिक्षा ली होती तो ठीक रहता न, अभी तो...' 'मैं साध्वी होती, यह कहना है न? पर कुछ नहीं... जब से जागे तभी से भोर... अभी तो धर्म का और अध्यात्म का ज्ञान पाना है...। मेरे पिताजी और माँ की यह इच्छा है और यह बात मुझे पसंद है। धर्म की कला यदि नहीं सीखें तो फिर इन सभी कलाओं का करना भी क्या? क्या महत्त्व इनका? धर्म के बिना तो सारी कलाएँ अधूरी है।' ___ 'बेटी... बिलकुल सही बात है तेरी । धर्म का बोध तो होना ही चाहिए। यह तो संसार है... संसार में सुख और दुःख तो आते-जाते रहते हैं, समुद्र के ज्वार-भाटे की भाँति। उसमें यदि धर्म का बोध हो... अध्यात्म की कुछ जानकारी हो तो हर एक परिस्थिति में आदमी संतुलित रह सकता है। समभाव बनाये रख सकता है। राग-द्वेष और मोह की तीव्रता-सघनता से बच सकता है। आतर्ध्यान और रौद्रध्यान से अपने आपको अलग रख सकता है। प्राप्त करना ही चाहिए बेटी धर्म का समुचित ज्ञान ।' ___ सुरसुंदरी को धनवती की बातें अत्यंत अच्छी लगी । 'सुरसुंदरी बेटी, अपने नगर में ऐसी साध्वीजी हैं। उनका नाम है, साध्वी सुव्रता। राजमहल से बिल्कुल निकट ही उनका उपाश्रय है। बहुत शांत-प्रशांत और उदार आत्मा है। उनके दर्शन करते ही तू मुग्ध हो उठेगी।' 'देखना... कहीं दीक्षा मत ले लेना...' अमरकुमार का स्वर अलबत्ता हँसी से भरा था, फिर भी उसमें कंपन था। वह खड़ा होकर कमरे से बाहर चल दिया। सुरसुंदरी के चेहरे पर हँसी उभरी। धनवती तो हँस पड़ी। For Private And Personal Use Only
SR No.009637
Book TitlePrit Kiye Dukh Hoy
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages347
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size2 MB
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