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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir राजमहल में २१५ 'कुमार, यह क्या? राज्य की पालकी लेकर राजा के आदमी बगीचे में आ रहे हैं। देखो तो सही तुम ।' मालती ने विमलयश को इशारे से दरवाज़े की तरफ देखने को कहा। 'अरे... ये लोग तो इधर हीं आ रहे हैं।' मालती दौड़ती हुई सामने गयी। मुख्य राजपुरुष ने मालती के पास आकर पूछा : 'मालती, तेरे यहाँ एक परदेशी राजकुमार आया हैं न?' 'हाँ...' 'कहाँ है?' 'मेरे घर में है।' मालती राज्य के आदमियों को लेकर अपने मकान में आयी । राजपुरूषों ने कमरे में प्रवेश किया। विमलयश ने खड़े होकर उनका स्वागत किया। राजपुरूषों ने प्रणाम करके कहा : 'परदेशी राजकुमार, हमारे महाराजा का एक संदेश आपके लिए हम लेकर आये हैं।' 'कहिए, महाराजा की क्या आज्ञा है मेरे लिए?' 'हमारे महाराजा आपको याद कर रहे हैं। आपका बनाया हुआ जादू का दिव्य पंखा कमलश्रेष्ठी ने महाराजा को भेंट किया है। वह देखकर, उसका प्रभाव जानकर, उस पंखे की रचना करनेवाले महान् कलाकार के दर्शन करने के लिए महाराजा आतुर हैं। आपको लिवा लाने के लिए हमें पालकी लेकर भेजा है।' 'मैं भी कलाकार की कला का मूल्याकंन करनेवाले बेनातट नगर के राजेश्वर के दर्शन करके आनंदित होऊँगा। आप थोड़ी देर प्रतीक्षा करें। मैं आधी घटिका में ही तैयार होकर आपके साथ चलता हूँ।' राजपुरूष मकान के बाहर आकर बैठे। मालती ने राजपुरूषों का उचित आतिथ्य किया। मालती के आनंद की सीमा नहीं थी। वह भी अपने योग्य कपड़े पहनकर विमलयश के साथ राजसभा में जाने के लिए तैयार हो गई थी। विमलयश ने उत्तम वस्त्रालंकार धारण किये। उसने बाहर आकर राजपुरूषों से कहा : For Private And Personal Use Only
SR No.009637
Book TitlePrit Kiye Dukh Hoy
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages347
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size2 MB
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