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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir राजमहल में २१३ LindITI. LAIIsuzalhattaste ३२. राजमहल में May द ENXXCELE'REExaysexTKARurar-RDAas बेनातट नगर का समुद्री किनारा... यानी पुष्पित-प्रफुल्लित प्रकृति की सौंदर्य लिला | उषाकाल में एकांत प्रकृति की गोद में समुद्र के किनारे कभी अभिनव सिंगार रचकर अपने प्रियतम की प्रतीक्षा करती हुई... सुरसुंदरी घूमती थी। अपने मूल रूप में आकर वह दूर-दूर... उछलते उदधि तरंगों में अमरकुमार के जहाजों का दर्शन करती थी। कभी वह विमलयश का नाम-रूप धारण करके बेनातट के रमणीय अरण्य में चली जाती थी। मिलन-व्याकुल होकर दौड़ती जाती नदियाँ... झरने... हरी-भरी धरती पर मुक्त उल्लास से नाचते-कूदते हिरन-हिरनियाँ, जलाशय में किलकारी भरते सारस युगल... मस्ती से नाचते-गाते मयूर युगल... सहकार वृक्ष से झुमती हुई लिपटती माधवी लता... प्रकृति के अपार सौंदर्यदर्शन में वह मुग्ध हो जाती। उसके कोमल हृदय ध्यान में लीन हो जाती थी। ___ कभी पारिजात के झले पर झलती हुई सुरसुंदरी संध्या की खिलती-खुलती स्वर्णिम आभा को देखती ही रह जाती। संध्या के रंगों में जीवन के सत्य का वास्तविक दर्शन करती... और आत्मा की शुचितम अनुभूति में गहरे उतर जाती। कभी... जब आकाश में से चंद्रमा की छिटकती चाँदनी अवनि पर आहिस्ताआहिस्ता उतर रही हो... जूही और रातरानी के फूल अपनी खुशबू को फैलाते होते, मदिर एवं मादक हवा की भीगी-भीगी लहरें रोमांच का अनुभव करवाती होती... ऐसे स्निग्ध और सुगंधित वातावरण में सुरसुंदरी पारिजात के वृक्ष टले पेड़ से सटकर बैठी रहती... और अमरकुमार की बाट निहारती । पर जब उसे अमरकुमार का साया भी नज़र नहीं आता... तब उसका खिला-खिला चेहरा मुरझा जाता। उसके गौर वदन पर ग्लानि छा जाती। उसकी आँखों में आँसू भर आते । आखिर... वह प्रेमसरिता सी नारी थी ना! उसका विषाद भरा हृदय जब उसे अतीत की स्मृतियों के खंडहर में ले उड़ता... उसका रोयाँ-रोयाँ कॉप उठता... पुराने ज़ख्मों की याद से | __फिर भी उसमें, उसकी आत्मा के अणु-अणु में सतीत्व का सत्व बहता था। उसमें सतीत्व की दृढ़ता थी। सतीत्व का शुद्ध तेज था । वह अपने आप पर काबू पा लेती। शुद्ध आत्मस्वरूप के ध्यान में डूब जाती थी। For Private And Personal Use Only
SR No.009637
Book TitlePrit Kiye Dukh Hoy
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages347
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size2 MB
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