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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सवा लाख का पंखा २११ इसलिए कुछ तरकीब सोचनी होगी...। सिर पर हाथ रखकर बैठने से क्या होगा? दिन गुज़र जाएँगे पर बात बनेगी नहीं!' विमलयश ने मन ही मन योजना बना ली। उस योजना के मुताबिक उसने पहला काम मालती को ही सौपा। मालती को बुलाकर कहा : । ____ 'मालती, यह एक पंखा मैं तुझे देता हूँ... तुझे बाज़ार में जाकर इस पंखे को सवा लाख में बेचना है!' मालती ने पंखा हाथ में लेकर ध्यानपूर्वक उसको देखा और पूछा। 'इस पंखे में ऐसी क्या विशेषता है कि कोई व्यक्ति इसे सवा लाख रूपये में खरीदने को तैयार होगा?' 'विशेषता? मालती, यह पंखा जादू का है। इस पंखें की हवा से चाहे जैसा भी ज्वर हो... बुखार हो... शांत हो जाता है। बीमार व्यक्ति स्वस्थ हो जाता है।' 'तब तो कोई न कोई ग्राहक शायद मिल जाएगा!' _ 'पर देख! पंखे की विशेषता पहले से सबको बता मत देना। कोई योग्य ग्राहक पूछे तो उसे बताना!' पंखा लेकर मालती चली आयी नगर में मुख्य चौराहे पर | वहाँ पहुँचकर अच्छी जगह देखकर खड़ी रही और फिर बोलने लगी : 'पंखा ले लो भाई पंखा! सवा लाख रूपये का पंखा! लेना है किसी को?' लोगों का टोला इकठ्ठा होता है। कोई हँसता है। कोई मालती को पागल समझकर चल देता हैं...। 'पंखे की क़ीमत क्या कभी सवा लाख देखी सुनी भी है, भाई?' लोग आपस में कानाफूसी करते हैं। पर कोई पूछने की हिम्मत नहीं करता है कि 'अरी मालती, तेरे पंखे में ऐसा क्या जादू भरा है कि तू इसकी क़ीमत सवा लाख बता रही है! पहला प्रबर बीता, पंखा लेने कोई आगे नहीं आया। दूसरा प्रहर गुज़र गया, पंखे का कोई खरीदार नहीं मिला। तीसरा प्रहर ढल गया... कोई व्यक्ति नहीं आता है पंखा खरीदने को। मालती मायूस होने लगी। पर चौथे प्रहर के ढलते-ढलते एक सेठ उधर से गुज़रे| उन्होंने यह तमाशा देखा | उसने आकर मालती से पुछा : For Private And Personal Use Only
SR No.009637
Book TitlePrit Kiye Dukh Hoy
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages347
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size2 MB
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