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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विदा, मेरे भैया! अलविदा, मेरी बहना! २०५ 'मेरे प्यारे भैया... मेरी एक बात सुनो... तुम तो मेरे मन में बस गये हो... इस देह में जब तक प्राण हैं... तब तक तो मैं तुम्हें नहीं भूला पाऊँगी... तुम्हारे तो मुझपर अनंत उपकार हैं...। तुम्हारे उपकारों को कैसे भुलाऊँ? मेरे भैया... दिन-रात, आठों प्रहर तुम्हारा नाम मेरे होठों पर रहेगा... तुम्हारी याद मेरे हृदय में रहेगी...। ___ मेरी प्यारी भाभियों को प्रेम देना। उन प्यारी-प्यारी भाभियों से कहना... 'तुम्हारे बिना मेरी बहन बिन पानी के मछली की भाँति तड़पती रहेगी... तरसती रहेगी तुम्हारे प्यार के बिना पता नहीं मैं कैसे जी पाऊँगी?' मेरे भाई... नौ-नौ महिने का एक सुंदर-सलोना-सपना टूट गया। सारे अरमान जलकर राख हो गये। अब क्या? तुम्हारी अनुकंपा... तुम्हारा निर्विकार प्रेम... तुम्हारा अहैतुक वात्सल्य... तुम्हारी वचननिष्ठा... तुम्हारा अद्भुत आत्मसंयम इन सारे गुणों को याद कर-कर के आँसू बहाती रहूंगी।' __ पर मेरे भैया... तुम तो बड़े विद्याधर हो। क्या साल में एकाध बार भी इस दुखियारी बहन के पास नहीं आओगे? मैं तो बिना पंख की पक्षिणी हूँ... कैसे आऊँगी तुम्हारे पास? तुम्हारे पास तो आकाशगामी यान है... तुम ज़रूर चंपा नगरी में पधारना। मेरी प्यारी भाभियों को साथ लेकर ज़रूर आना | आओगे ना भैया? मैं रोज़ाना शाम को हमारी हवेली की छत पर बैठी-बैठी तुम्हरा इंतजार करूँगी... __ ओ मेरे... तु मुझे दर्शन देना... तू चाँद बनकर चले आना। तू बादल बनकर आ जाना... तू किसी भी रूप में आना... तू किसी भी भेष में आना मेरे भैया... भूल नहीं जाना । अपनी इस अभागिन बहन को। नहीं भूलोगे ना मेरे भैया? बोलोना... कुछ तो बोल मेरे भाई।' सुरसुंदरी रत्नजटी के कदमों में लेट गयी। रत्नजटी ने उसको खड़ा किया... उसके माथे पर अपने दोनों हाथ रखे। उसकी आँखे बरसाती नदी की भाँति बह रही थी। उसके गरम-गरम आँसू सुरसुंदरी के माथे को अभिषेक करने लगे। यकायक उसने अपने आपको संयमित किया । हाथ जोड़कर सुरसुंदरी को प्रणाम किया और तीव्र वेग से अपने विमान में जा बैठा। शीघ्र-गति से विमान को आकाश में ऊपर उठाया... और विमान बादलों के पहलू में सिमटा आँखों से ओझल हो गया। For Private And Personal Use Only
SR No.009637
Book TitlePrit Kiye Dukh Hoy
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages347
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size2 MB
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