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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भीतर का शृंगार १७६ कीमती आभूषणों से उसे सजाया... सुरसुंदरी का रूप पूनम के चाँद-सा खिल उठा। 'अच्छा, तुमने मुझे बाहरी शृंगार दिया... अब मैं तुम्हें अपना भीतरी शृंगार बताऊँ क्या?' 'हाँ हाँ... जरूर... हम तो जानने के उत्सुक हैं...' चारों रानियाँ सुरसुंदरी के सामने बैठ गयीं। ___ 'देखो... भाभी! हमें सम्यग्दर्शन की सुंदर साड़ी पहननी चाहिए! सम्यग्दर्शन यानी सच्ची श्रद्धा! वीतरागसर्वज्ञ परमात्मा पर, मोक्षमार्ग की आराधना-साधना में रत सद्गुरूओं पर... एवं सर्वज्ञ के द्वारा बताये गये धर्ममार्ग पर श्रद्धा के वस्त्र! यह अपना पहला श्रृंगार है।' ___ 'हम स्त्रियों के वस्त्रों में सबसे महत्त्वपूर्ण वस्त्र है कंचुकी! दया एवं करूणा के कंचुकी हमें पहनना है! स्त्री करूणा की जीवंत मूर्ती होती है... क्षमा एवं दया की जीवंत प्रतिमा-सी होती है।' 'अपने गले में शील एवं सदाचार का नौलखा हार सुशोभित हो रहा हो! यह अपना क़ीमती में क़ीमती हार है...!! प्राण चले जाएँ तो भले... पर अपना शील नहीं लुटना चाहिए। अपने मस्तक पर... ललाट पर तिलक चाहिए ना? वह तिलक करना है तपश्चर्या का! अपने जीवन में छोटी या बड़ी... कोई न कोई तपश्चर्या होनी ही चाहिए। यह तुमने जो मेरे हाथ में रत्नों व मोतियों से जड़े हुए कंगन पहनाये हैं... ये सुशोभित तो होंगे अगर मैं इन हाथों से सुपात्र दान दूँ! अनुकंपा दान दूं... हाथ की शोभा दान से है। दान यही अपना सच्चा कंगन है। ___ अपने होंठ हम पान से - तांबूल से लाल करते हैं... पर सचमुच तो सत्य एवं प्रिय वाणी ही अपना तांबूल है... अपनी वाणी असत्य एवं अप्रिय नहीं होनी चाहिए। मेरी चारों भाभियों की वाणी कितनी मीठी है? कितनी सच्ची एवं अच्छी है? इसलिए तो मैं तुम सब पर मोहित हो गयी हूँ।' ___ चारों रानियाँ शरमा गयी... उनकी आँखें ज़मीन पर टिकी रही... सुरसुंदरी ने प्रेम से चारों के चेहरे ऊपर किये... और अपनी बात आगे चलायी... ___'मेरी आँखों में तुमने काजल लगाया है। अब मेरी आँखें पहले से ज्यादा सुंदर लग रही है न? पर इससे भी ज्यादा सुंदर आँखें मुझे तुम्हारी लग रही For Private And Personal Use Only
SR No.009637
Book TitlePrit Kiye Dukh Hoy
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages347
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size2 MB
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