SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 179
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir राज को राज ही रहने दो १६७ इधर महामंत्री आनन-फानन में जाकर असली राजा को रानी के कमरे में लिवा लाये । राजा ने तुरंत मंत्र जाप करके अपने शरीर में प्रवेश कर दिया । राजा ने महामंत्री का बहुत-बहुत आभार माना । महामंत्री ने रानी से तोता लेकर उसे मार डाला । रानी को अपना असली राजा मिल गया। राजा को भी अब अक्ल आ गयी। महामंत्री की बात अब उसे समझ में आयी । ' 'वाह! भाई, वाह... तुमने तो कितनी सुंदर एवं मज़ेदार कहानी सुनायी..... बहुत अच्छी... अच्छा तुम्हारी सलाह के मुताबिक मैं अपने जीवन की कोई भी बात मेरी भाभियों से नहीं करूँगी... भरोसा रखना । ' अपना विमान वैताढ्य पर्वत पर से उड़ रहा है... देख, नीचे, विद्याधरों के हज़ारों नगर दिख रहे हैं।' सुरसुंदरी ने नीचे निगाहें की तो विद्याधरों की अद्भुत दुनिया दिखने लगी। 'अपना नगर कहाँ है?' 'अब बस... सुरसंगीत नगर के बाहरी इलाके में ही विमान को उतारता 'सीधे महल की छत पर ही उतारों ना ? भाभियाँ आश्चर्यचकित हो उठेंगी।' 'नहीं... नहीं... मेरी महान भगिनी को तो मैं भव्य नगर प्रवेश करवाऊँगा । फिर न जाने कब मेरी यह बहन मेरे नगर में आनेवाली है? उसमें भी अमरकुमार के मिलने के बाद तो...' 'बस... बस... अब...' सुरसुंदरी का चेहरा शर्म से लाल टेसू-सा निखर उठा । For Private And Personal Use Only
SR No.009637
Book TitlePrit Kiye Dukh Hoy
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages347
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy