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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आखिर 'भाई' मिला! १४९ 'दुष्ट! नराधम! इस महासती पर तू प्रहार करना चाहता है...? तेरी जान ले लूंगी।' __ पल्लीपति ज़मीन पर लुढक गया... उसकी तलवार दूर उछल गयी... उसके मुँह में से खून आने लगा... पूरा शरीर पसीने से तर-बतर हो गया... उसकी आँखें फटी-फटी रह गयी... भय... त्रास व पीड़ा से वह चीख उठा : 'मुझे बचाओ... मैं तुम्हें माँ मानता हूँ... मेरी माँ!... बचाओ...।' देवी ने सुरसुंदरी के सिर पर हाथ रखा | सुरसुंदरी तो पंचपरमेष्ठी के ध्यान में लीन थी। सिर पर देवी का दिव्य कर-स्पर्श होते ही उसने आंखें खोली... शासनदेवी को हाजरा-हजूर देखकर वह हर्ष से विभोर हो उठी। उसने मस्तक झुकाकर प्रणाम किया और देवी अदृश्य हो गयी। सुरसुंदरी ने पल्लीपति को देखा । वह बेचारा डर के मारे आँधी में पत्ते की भाँति काँप रहा था। उसके मुँह में से अब भी खून बह रहा था।... खड़े रहने की भी उसमें ताकत नहीं थी... वह बड़ी मुश्किल से बोल पाया : ___ 'माँ... माफ करो मुझे! मेरी बड़ी गलती हुई... मैं तुम्हें नहीं पहचान पाया। तुम तो साक्षात जगदम्बा हो! तुम्हारी करूणा से ही मैं जीवित रह सका हूँ। वरना मैं तो मर ही जाता... जाओ माँ! तुम्हे जहाँ जाना हो... तुम तो महासती हो...' रात का तीसरा प्रहार पूरा हो चूका था। चौथा प्रहार प्रारंभ हो गया था। चाँद भी उग गया था, आकाश में। सुरसुंदरी एक पल भी देर किए बगैर, पल्ली में से निकल गयी... और जंगल के रास्ते आगे बढ़ गयी। ___ उसके शरीर मे फुरती आ गई थी। उसकी कल्पना में से शासनदेवी की आकृति हट नहीं रही थी। श्री नवकार महामंत्र के अचिंत्य प्रभाव का प्रत्यक्ष अनुभव करके वह हर्षविभोर हुई जा रही थी। और वह पल्लीपति सरदार! जब उसके साथी लुटेरे वापस पल्ली में लौटे, तो वह उन पर आगबबूला होता हुआ बरस पड़ा : 'दुष्टो! तुम किसे ले आये थे यहाँ? जानते हो?' बेचारे लुटेरे तो पल्लीपति का इतना खोफनाक रूप देखकर सकते आ गये 'वह तो साक्षात जगदम्बा थी... तुम्हारे पापों से आज मैं मर ही जाता... भला हो उस जगदम्बा माँ का, उसने मुझे बचाया, पापियों! अब कभी भी For Private And Personal Use Only
SR No.009637
Book TitlePrit Kiye Dukh Hoy
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages347
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size2 MB
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