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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४१ आदमी का रूप एक सा! ___ मदनसेना ने सुरसुंदरी को देखा था। अंत:पुर में उसका प्रवेश होते ही वह चौंक उठी थी : 'महाराजा ज़रूर इस औरत को रानी बनायेंगे... यह शायद उनकी प्रिय रानी हो जाए!' वह चतुर थी, विचक्षण थी। उसने तुरंत अनुमान लगा लिया। 'पुरूष तो हमेंशा नावीन्य का पूजारी होता है... यह ज़रूर नयी रानी बन जाएगी... वैसे भी रूपसी है... खूबसूरत है। राजा का मन मोह लेगी। धीरेधीरे... मैं अप्रिय हो जाऊँगी, मेरा सर्वस्व लूट जाएगा। मैं कहीं की नहीं रहूँगी। नहीं... नहीं मैं इस औरत को यहाँ नहीं रहने दूंगी।' राजा मकरध्वज सोचता है : 'मेरी किस्मत तेज है। कितनी आसानी से इतनी खूबसूरत परी जैसी औरत हाथ लग गयी है! दुनिया में खोजने जाऊँ तो भी ऐसा स्त्री-रत्न मिलना मुमकिन नहीं। कितना अद्भुत सौंदर्य है... एक-एक अंग जैसे संगमरमर सा तरासा हुआ है...। साक्षात जैसे कामदेव की रति । मानो कामदेव ने ही इसको रचा हो। मदनसेना तो इसके आगे काली-कलूटी सी लगती है। मैं अवश्य सुरसुंदरी को पटरानी का पद दे दूंगा।' राजा सुरसुंदरी से मिलने के लिए काफी अधीर हो उठा। अंत:पुर में गया। बेसमय, बेवजह राजा को अंतःपुर में आया देख कर पहले तो मदनसेना को अजूबा लगा... पर दूसरे ही क्षण राजा का इरादा भाँप गई। उसने राजा का स्वागत किया। उसका सन्मान किया और अपने शयनकक्ष में राजा को ले आयी। राजा की अस्वस्थता रानी से छिपी नहीं थी। 'अभी इस वक्त कैसे आना हुआ?' 'ऐसे ही चला आया... वह औरत आयी है न? उसे कोई असुविधा तो नहीं है न... बस, यही पूछने के लिए आया था।' 'कौन है वह स्त्री?' 'एक निराधार स्त्री है... धीवरों को एक मगरमच्छ के पेट में से जिंदा मिली है... वे मुझे भेंट कर गये हैं।' 'तो अब इसका क्या करना है?' 'अभी तक मैंने उसके साथ कुछ बातचीत नहीं की है... बात करूँ तब मालम हो कि उसका क्या इरादा है।' For Private And Personal Use Only
SR No.009637
Book TitlePrit Kiye Dukh Hoy
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages347
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size2 MB
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