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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org **** सुरसुंदरी सरोवर डूब गई ! ५। २१. सुरसुंदरी सरोवर में डूब गई CAEZZ PM PERSARAPARARENES Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 'वैद्यराज, हम देवी लीलावती के भवन से आ रहे हैं। देवी ने कहलवाया है कि यह नवागंतुक सुंदरी के दर्द को जानकर उसका उपचार करना है ।' सरिता ने वैद्य राज को नमन करके विनयपूर्वक निवेदन किया । १३३ 'अच्छा, तुम भीतर के कमरे में बैठो, मैं जरा अपने नित्यकर्म से निपटकर देख लूँगा।' 'यदि आपको विलम्ब होनेवाला हो तो इस सुंदरी को मैं यहीं छोड़कर जाऊँ! फिर वापस आ जाऊँगी इसे ले जाने के लिए । ' 'ठीक है... तुझे जाना हो तो जाओ बाद में वापस आ जाना। चूँकि मुझे देर तो लगेगी ही । ' सुंदरी की ओर देखकर सरिता ने जाने की इजाज़त ली। इशारे से जंगल का रास्ता दिखाकर सरिता वहाँ से तेज़ी से चल दी। सुरसुंदरी ने खिड़की में से दूर-दूर तक फैले हुए जंगलों को देखा । पेड़ों के झुरमुट थे... छोटी-मोटी पहाड़ियाँ ... नदी-नाले... दिख रहे थे । जंगलों के उस पार ओझल हो जाना सरल था । नित्यकर्म से निपटकर वयोवृद्ध वैद्यराज सुरसुंदरी के पास आये। 'कहो... बेटी... क्या तकलीफ है ?' ‘पितातुल्य वैद्यराज। मेरी तकलीफों का अंत नहीं है। पति के द्वारा त्यक्त और इस वैश्या के हाथों बिकी मैं एक राजकुमारी हूँ । आपकी शरण में आयी हूँ । मुझे बचा लीजिए !' 'बेटी, मैं तो एक वैद्य हूँ ।' 'मैं जानती हूँ... रोग का मेरा बहाना है । मुझे दरअसल में तो यहाँ से फरार हो जाना है। मैं अपनी जान देकर भी मेरे शील की रक्षा करना चाहती हूँ। मैं आपकी एक सहायता चाहती हूँ । ' For Private And Personal Use Only ‘बोल बेटी! क्या करूँ मैं तेरे लिए ? तू इतना सहन कर चूकी है... बेटी.. क्या करूँ? मेरा तो पेशा है, फिर भी तू बोल मैं क्या कर सकता हूँ ?' 'मैं यहाँ से भाग रही हूँ । लीलावती तलाश करने के लिए यहाँ आयेगी ।
SR No.009637
Book TitlePrit Kiye Dukh Hoy
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages347
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size2 MB
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