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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चौराहे पर बिकना पड़ा! १२१ को चीरकर आगे आ रही थी। लोग उसे हँस-हँस कर रास्ता खुला कर दे रहे थे। वह करीब आयी। उसने गौर से सुरसुंदरी की देह को देखा। स्त्री के शरीर के जाँचने-परखने में उसकी आँखे चतुर थीं। उसका नाम था लीलावती। सोवनकुल की वह सुप्रसिद्ध वेश्या थी। वह एक बहुत बड़ा वेश्यालय चला रही थी। उसके पास लाखों रुपये थे। उसने फानहान से कहा : ___ 'मैं दूँगी सवा लाख रुपये! व्यापारी, ले चल इस सुंदरी को मेरी हवेली पर!' लोगो ने हर्षनाद किया। लीलावती के पीछे फानहान सुरसुंदरी को लेकर चला। सुरसुंदरी परेशान थी... 'इस अनजान प्रदेश में मेरे लिए सवा लाख देने वाली यह औरत कौन है?' हवेली आ गयी... लीलावती ने सवा लाख रुपये गिनकर दे दिये | फानहान रूपयों को लेकर सुरसुंदरी की ओर देखा और कुटिलतापूर्ण हँसकर चल दिया। लीलावती सुरसुंदरी को लेकर अपने भव्य रतिक्रिया-भवन में आयी। 'क्या नाम है तेरा, रूपसी?' 'सुरसुंदरी' 'बड़ा प्यारा नाम है... पर मैं तो तुझे सुंदरी ही कहूँगी।' 'चलेगा...!' 'तू स्नान वगैरह करके सुंदर कपड़े पहन ले! फिर हम शांति से बातें करेंगे।' सुरसुंदरी ने स्नान करके, लीलावती के दिए हुए कपड़े पहन लिए। वह लीलावती के पास आकर बैठ गयी । लीलावती सुरसुंदरी का सरसों के फूलोंसा खिला खिला रूप देखकर मुग्ध हो उठी। उसका मन बोल उठा : 'सवा लाख रुपया तो दस दिन में यह रूपसी कमा देगी!' उसने सुरसुंदरी से कहा : 'सुंदरी, अब तेरे तन-मन के दुःख मिट गये समझना! तेरे मन में जो भी चिंताएँ हो... जो भी परेशानी हो... सब कुछ बाहर फेंक देना। एकदम खुश हो जा। इस हवेली में तुझे रहना है! तुझे पसंद हो वह खाना खाना । जो पसंद हो वह श्रृंगार करना! इस हवेली के उद्यान में सरोवर है... उसमें मनचाही For Private And Personal Use Only
SR No.009637
Book TitlePrit Kiye Dukh Hoy
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages347
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size2 MB
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