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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 1.का.का .xauaixhamita.sistar १. छोटी-सी बात May 2 3 xsexxsexreram"TITErrrPhone.. .AM M /m. Sl 'सुंदरी, यह मिठाई ले, खा ले, फिर पढ़ाई शुरू करना।' ‘पर यह क्या? किसकी तरफ से आज मुँह मीठा कराया जा रहा है, अमर?' 'तेरी ओर से!' 'क्या कहा? मेरी ओर से?' 'हाँ भाई, हाँ। तेरी ओर से, सुर!' 'पर मुझे तो इसका कुछ पता भी नहीं। फिर, मेरी ओर से कैसे हो सकता है, अमर?' 'तेरी ओर से मैंने यह कर दिया!' 'कैसे?' 'तेरे आँचल के छोर में सात कौड़ियां बँधी हुई थी न?' 'हां, वह तो थीं।' 'बस, मैंने वही निकालकर उससे मिठाई मँगवायी... पाठशाला के सभी विद्यार्थियों को दावत दी... तेरा हिस्सा अलग रखा... तू तो सो गयी थी न? अब तू खा ले, फिर पढ़ाई...' 'अरे वाह!' उसकी बात को बीच में काटती हुई सुरसुंदरी उबल पड़ी। 'क्या सेठ-साहूकार का लड़का है...! पराये पैसों से दावत देकर जैसे तूने बड़ा एहसान कर दिया... मुझसे पूछे बगैर मेरे पैसे लिये और मिठाई मँगवाकर सबको बाँट दी... यह तो कह दे, मेरे मेहरबान! ऐसी चोरी करना कहाँ से सीखा? तेरी माँ तो तेरी कितनी तारीफ़ करती है! उस बेचारी को क्या मालूम कि उसका लाड़ला क्या करतूतें करता है? ऐसे धंधे करता है? ऐसा करने से क्या तू अच्छा लगेगा? तेरी इज्जत बढ़ेगी, क्या तू ऐसा समझता है? पर, याद रखना, ऐसे तो तेरी बेइज्जती होगी। पंडितजी तुझे बुद्धिमान, होशियार समझकर काफी महत्त्व देते हैं, इसलिए क्या तू औरों की इस तरह चोरियां करता है?... क्यों?' 'पर सुंदरी, इस छोटी बात का क्यों इतना बतंगड़ बनाये जा रही है? तू तो कितनी खरी-खोटी सुना रही है?' For Private And Personal Use Only
SR No.009637
Book TitlePrit Kiye Dukh Hoy
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages347
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size2 MB
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