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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समुंदर की गोद में १०८ ___ 'नहीं... ऐसे वचन को निभाने की ताकत मुझ में नहीं है। मैं तुझे अपनी प्रिया बनाकर सुखी करूँगा। मेरा यही इरादा उस समय था और आज भी है।' ___ 'मैं सुखी हूँ ही। मुझे सुखी बनाने के ख्वाब देखने की ज़रूरत नहीं है। आपको अपना वचन निभाना चाहिए।' 'एक बार तो मैंने कह दिया... मैं नहीं निभा सकता ऐसे वचन! मैं तो सुंदरी तेरी इस अप्सरा की तरह खूबसूरती का दिवाना हो चुका हूँ। मैं तेरी जवानी को देखता हूँ और मेरा अंग-अंग सुलग उठता है। मेरी रातों की नींद गायब हो गयी है। सुरसुंदरी, खाना-पीना भी हराम हो गया है...' 'यह तो धोखा है, विश्वासघात है, तुम बड़े व्यापारी हो, तुम्हें इस तरह वचनभंग नहीं करना चाहिए | पर-स्त्रीगमन का पाप तुम्हारा सर्वनाश करेगा। भला, चाहो तो इस पापी विचार को इस समुद्र में फेंक दो।' ___ 'अरे, समुद्र में तो तू उस क्रूर अमरकुमार की याद को फेंक दे। मेरी पत्नी हो जा। यह अपार संपत्ति तेरे कदमों में होगी। मेरे साथ संसार के स्वर्गीय सुख भोग ले। मैं तुझे कभी दुःखी नहीं होने दूंगा।' धनंजय ने एकदम सुरसुंदरी का हाथ पकड़ लिया। सुरसुंदरी ने झटका देकर अपना हाथ छुड़ा लिया और वह दूर हट गयी। उसका मन गुस्से से बौखला उठा था, पर वह संघर्ष करने के बदले समझदारी से काम लेना चाहती थी। दिल में लावा उफन रहा था, पर उसने आवाज में नरमी लाकर कहा : 'क्या तुम मुझे सोचने का समय भी नहीं दोगे?' 'नहीं, अब तो तुम्हारे बगैर एक पल भी जीना दुश्वार है।' 'तो मैं जीभ कुचलकर मर जाऊँगी या इस समुद्र में कूद जाऊँगी।' 'नहीं-नहीं, ऐसा दुःसाहस मत करना सुंदरी! तुझे सोचना हो तो सोच ले । शाम तक निर्णय कर ले। बस! फिर तू इस अलग कमरे में नहीं रहेगी। मेरे कमरे में तेरा स्थान होगा। आज की रात मेरे लिए स्वर्ग की रात होगी।' धनंजय कमरा छोड़कर चला गया। सुरसुंदरी के मुख में से शब्द बिखरने लगे : दुष्ट... बेशरम... तेरी आज की रात स्वर्गीय सुख तो क्या, पर नरक के दुःख में ना गुजरे तो... मुझे याद करना।' For Private And Personal Use Only
SR No.009637
Book TitlePrit Kiye Dukh Hoy
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages347
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size2 MB
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