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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir फिर सपनों के दीप जले! १०१ एकाध घटिका में तो जहाज़ किनारे पर आ पहुँचा | फटाफट आदमी किनारे पर उतरकर आ गये। उन्हें मीठा जल भरना था। उन लोगों ने दूर खड़ी सुरसुंदरी को देखा । देखते ही रह गये... वे जहाज़ में से उतर रहे अपने मालिक के पास दौड़ते हुए गये और बोले : 'सेठ, वहाँ देखिए! सुरसुंदरी की ओर इशारा करते हुए उन्होंने श्रेष्ठी का ध्यान खिंचा। श्रेष्ठी की दृष्टि सुरसुंदरी पर गिरी । वह भी देखता ही रह गया । आदमियों ने पूछा : यह कौन होगी इस निर्जन-डरावने द्वीप पर?' __ 'इस द्वीप की अधिष्ठात्री देवी लगती है। तुम चिंता मत करो... मैं उस देवी के पास जाता हूँ। तुम अपना काम करो।' श्रेष्ठी सुरसुंदरी के पास आया। साष्टांग प्रणिपात किया, दोनो हाथ जोड़कर, सिर झुकाकर खड़ा रहा। सुरसुंदरी समझ गयी थी वह व्यापारी मुझे देवी मानकर नमस्कार कर रहा है। उसने कहा, 'मैं कोई देवी नहीं हूँ... मैं तो एक मानव स्त्री हूँ!' ___'मैं यहाँ पर मेरे पति के साथ आयी थी। हम सिंहलद्वीप जाने के लिए निकले थे। पर मेरा पति मुझे यहाँ छोड़कर, सोयी हुई छोड़कर चला गया। इसलिए मैं यहाँ पर अकेली रह गयी हूँ। मैं किसी ऐसे जहाज़ की खोज में हूँ जो सिंहलद्वीप की ओर जाता हो या फिर चंपानगरी की तरफ जानेवाला कोई जहाज़ मिल जाए।' 'तुम यदि मेरे साथ आना चाहो तो मैं तुम्हें सिंहलद्वीप ले चलूँगा।' श्रेष्ठी सुरसुंदरी के रूप को अपनी भूखी नज़रों से पी रहा था, पर उसने अपनी वाणी में संयम रखा... शालीनता का प्रदर्शन किया। सुरसुंदरी को साथ ले चलने की बात, उसने बड़े सलीके से कही। सुरसुंदरी भी चतुर थी। एक अनजान परदेशी के साथ समुद्री यात्रा के भयस्थान से वह परिचित थी। और फिर वह खुद पति से बिछुड़ी युवती थी, पुरूष की कमजोरी से वह भली-भाँति परिचित थी। इसलिए उसने श्रेष्ठी से कहा : 'आप यदि मुझे सिंहलद्वीप तक ले चलेंगे तो मैं आपका उपकार नहीं भूलूँगी। पर मेरी एक शर्त आप यदि मानें तो ही मैं आपके साथ आ सकती हूँ।' 'क्या शर्त है? जो भी कहोगी... मैं ज़रूर स्वीकार करूँगा।' 'या तो तुम्हें मुझे अपनी बहन मानना होगा... या फिर बेटी मानना होगा। मेरे पति के अलावा दुनिया के सभी पुरूष मेरे लिए या तो भाई हैं... या पिता हैं।' For Private And Personal Use Only
SR No.009637
Book TitlePrit Kiye Dukh Hoy
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages347
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size2 MB
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