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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७२ विद्या विनयेन शोभते राजा-रानी दोनों एकडंड महल में आनंद से रहते हैं। बगीचे में घूमते हैं...और हर एक ऋतु के फल-फूल देखकर आनंदित हो उठते हैं। कहाँ-कहाँ पर कौन-कौन से फलों के पेड़ हैं यह राजा के खयाल में पूरी तरह आ गया था। राजगृही नगर के लोग भी एकडंड महल की रचना देखकर और बगीचे की सुंदरता देखकर दाँतों तले उँगली दबा जाते हैं। जी भरकर प्रशंसा करते हैं, राजा-रानी के किस्मत की। अभयकुमार की बुद्धिमत्ता पर आफरीन हो उठते हैं...और यूँ दिन बड़ी खुशी मे कटते हैं। उसी राजगृही नगर में मातंग नाम का आदमी अपनी पत्नी के साथ रहता था। वह था तो चंड़ाल जात का पर बड़ा बुद्धिमान था। उसके पास दो विद्याएँ भी थी। उसे अपनी पत्नी पर बहुत प्रेम था। पत्नी जो कुछ कहती, मातंग उसकी हर एक बात मानता था। सर्दियों के दिन थे। एक दिन मातंग चंडाल की पत्नी को आम खाने की इच्छा हुई। उसने अपने पति से कहा : 'मेरा मन आम खाना चाहता है, आप कहीं से भी मेरे लिये आम्र फल ले आओ!' 'पर अभी सर्दियों में भला, आम मिलेंगे कहाँ पर? अभी तो आम की ऋतु कहाँ है?' 'कहीं से भी लाकर के दो। मुझे आम खाना है। और हाँ, राजा के नये बगीचे में तो बारहो महीनों आम लगे रहते हैं पेड़ पर | वहीं से ले आओ!' _ 'पर राजा के बगीचे पर चौकी-पहरा कितना भारी रहता है...? अंदर जाऊँ कैसे? कहीं पकड़ा गया तो?' 'कुछ भी हो...मुझे आम खाना है...। मुझे कल तो आम चाहिए ही।' जिद...और वह भी औरत की! बेचारा चंड़ाल तो मुसीबत में फंस गया । उसने सोचा : ___ 'राजा के नये बगीचे में से ही आम मिल सकता है सर्दियों में, पर बगीचे में मुझे जाने कौन दे? आम तोड़ने कौन दे?' वह हिम्मत करके बगीचे के पास गया। बगीचे के चारों तरफ चक्कर काटने लगा। उसने बगीचे की दीवार के समीप ही एक आम के पेड़ पर आम लटकते देखे, पर डाली काफी ऊपर थी। For Private And Personal Use Only
SR No.009636
Book TitleMayavi Rani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages155
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size1 MB
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