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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विद्या विनयेन शोभते 100 k४. विद्या विनवेन शोभते । मगध नाम का एक बहुत बड़ा देश था। उस देश के राजा का नाम था श्रेणिक! श्रेणिकराजा भगवान महावीर का परम भक्त था। हालाँकि भगवान महावीर के परिचय में आने से पहले तो श्रेणिक धर्म को मानता ही नहीं था। पर भगवान महावीर की वाणी सुनकर वह उनका परम भक्त हो गया था। श्रेणिक की रानी का नाम था चेल्लणा। राजा को रानी के ऊपर बहुत प्यार था। रानी की हर एक इच्छा वह पूरी करता था। रानी को जो भी चाहिए, राजा उसे लाकर देता था। एक दिन रानी चेल्लणा ने राजा से कहा : 'महाराजा, मेरे लिये नगर के बाहर बगीचे में एक सुन्दर एकडंड महल बनवाइये। फिर हमलोग उसमें रहेंगे। राजा ने रानी की बात मान ली और कहा : 'रानीजी, तुम्हारे लिये जल्दी से जल्दी महल बनवाने के लिये मैं आज्ञा करता हूँ।' राजा ने अपने महामंत्री अभयकुमार को बुलाकर कहा : 'अभय, नगर के बाहर बगीचे में रानी चेल्लणा के लिये एक सुंदर महल बनवाना है। पूरा महल लकड़ी के एक खंभे पर बनना चाहिए।' अभयकुमार ने कहा : 'महाराजा, इसके लिये तो बड़ी-बड़ी लकड़िया चाहिये | मैं आज ही बढ़ई को बुलवाकर सारी बात करता हूँ। फिर मैं स्वयं बढ़ई को लेकर, जिस वृक्ष की लकड़ी चाहिये...जंगल में जाकर कटवा दूंगा। जल्दी से जल्दी काम चालू करवाने की कोशिश करूँगा।' राजा खुश हो गया। रानी भी खुश हो उठी। अभयकुमार ने बढ़िया कारीगरों को बुलवाकर एकडंड महल बनाने की बात की। कारीगरों ने कहा : 'महल तो हम छह महीने के अंदर-अंदर बना सकते हैं...और पूरा महल लकड़ी का ही बनायेंगे। जिस खंभे पर महल बनायेंगे... वह खंभा भी लकड़ी का ही बनायेंगे। पर इसके लिये जंगल में जाकर जैसी लकड़ी हमें चाहिए वह लानी होगी।' For Private And Personal Use Only
SR No.009636
Book TitleMayavi Rani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages155
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size1 MB
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