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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org श्रेष्ठिकुमार शंख ५८ मंत्र का स्मरण कर रहा था। डाकू सरदार ने तलवार खींची। देवी को प्रणाम किया और पुरुषों का वध करने के लिये आगे बढ़ा। इतने में उसका एक नौकर दौड़ता हुआ आया और चिल्लाया : Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 'सरदार...दौड़ो...दौड़ो... तुम्हारे बेटे को भूत ज्यादा हैरान कर रहा है । ' सरदार ने तलवार दूर फेंक दी और दौड़ता हुआ अपने बेटे के पास पहुँचा । सरदार पुत्र की शांति के लिये उपाय करने लगा... पर ज्यों-ज्यों उपाय करता हैं, त्यों-त्यों पुत्र का दर्द बढ़ता है... वह चिल्लाता है... सर पटकता है.... खिंचता है। सरदार चिंतित हो उठा। उसे कोई उपाय नहीं सूझ रहा है। उसे लगता है...'अभी उसका बेटा मर जायेगा...' उसकी आँखों में आँसू भर आये...'ओ भगवान...! तू मेरे बेटे को बचा ले ... ।' वह भगवान को पुकारने बाल लगा। इधर चंडिका के मंदिर में श्री नवकार मंत्र के ध्यान में लीन बने हुए शंख ने डाकू सरदार के एक साथी से कहा : 'यदि तुम मुझे तुम्हारे सरदार के पुत्र के पास ले चलो तो मैं तुम्हें कुछ चमत्कार दिखा सकता हूँ। शायद सरदार का बेटा बच सकता है । ' 'क्या चमत्कार दिखायेगा रे तू ?' 'यह तो वहाँ पर रुबरु देखने को मिल जायेगा ।' उस डाकू ने जाकर अपने सरदार से बात कही : 'ग्यारह पुरुषों में जो सब से छोटावाला है... वह यहाँ आकर कुछ चमत्कार बताने कि बात कह रहा है... तो उसे यहाँ ले आऊँ ?' 'जरुर...जल्दी से जल्दी ले आ तू उसे!' सरदार उछल पड़ा। आशा की एक किरण उसे दिखाई दी। उस डाकू ने जाकर शंख से कहा : 'यदि हमारे सरदार के बेटे को तूने बचा लिया, उसे अच्छा कर दिया तो तुझे हम यहाँ से छोड़ देंगे।' शंख के चेहरे पर आनन्द छा गया । वह सरदार के पास आया। सरदार ने शंख की सुन्दर आकृति देखकर कहा : 'ओ विद्वान पुरुष...तुम्हारा सुन्दर चेहरा कहता है कि जरुर तुम कोई चमत्कार करने की शक्ति रखते हो। तुम मुझ पर उपकार करो। मेरे बेटे को बचा लो। मैं तुम्हारा ऋणी रहूँगा । तुम्हें जो साधन-सामग्री चाहिए वह मिल जायेगी । ' शंख ने कहा : For Private And Personal Use Only
SR No.009636
Book TitleMayavi Rani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages155
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size1 MB
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