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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 33 मायावी रानी और कुमार मेघनाद मदनमंजरी को आनंद हुआ। साथ ही साथ, संसार के सुखों के प्रति उनके दिल में वैराग्य का भाव पैदा हो गया। अब दोनों ने गुरुमहाराज से विनती की : 'गुरुदेव, आप कुछ दिन यहाँ पर रुकने की कृपा करें | उस भवसागर को पार करानेवाली भागवती दीक्षा लेने के भाव हमारे दिल में जगे हैं | नगर के सभी जिनालयों में आठ दिन का भव्य प्रभुभक्ति का महोत्सव रचाकर, राजकुमार का राज्याभिषेक करके, आप के चरणों में हम जीवन समर्पित करना चाहते हैं।' गुरुदेव ने सहमति दी। महोत्सव बड़े ठाठ-बाठ से हो गया। राजकुमार का राज्याभिषेक हो गया। राजा मेघनाद और रानी मदनमंजरी ने गुरुदेव श्री पार्श्वदेव के चरणों में दीक्षा ली। ज्ञान-ध्यान और तपश्चर्या करके उन दोनों ने सभी कर्मों को नष्ट करके केवलज्ञान प्राप्त किया। और फिर आयुष्यकर्म पूरा होने पर उनकी आत्माएँ मोक्ष में चली गई। For Private And Personal Use Only
SR No.009636
Book TitleMayavi Rani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages155
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size1 MB
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