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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मायावी रानी और कुमार मेघनाद कंजूसाई-कृपणता जरा भी अच्छी नहीं लगती थी... पर वह कभी भी धना के साथ झगड़ा नहीं करती थी! धना अगर बगुले जैसा था...तो धन्या राजहंसी जैसी थी! धना काँच के टुकड़े जैसा था और धन्या थी लक्ष्मी के अवतार जैसी! कैसी बेमेल और बेढंगी जोड़ी थी! धना के पास पूरे तीन लाख रुपये थे...। फिर भी वह गरीब की भाँति गाढ़ी मजदूरी करता था! साधुओं के पास जाने का तो नाम तक नहीं! अरे, अपने रिश्तेदारों के साथ भी वह किसी तरह का व्यवहार नहीं रखता था! देवमंदिर की बात उसे कतई अच्छी नहीं लगती! यह सब देखकर धन्या को बड़ा दुःख होता...उसका दिल जल उठता... पर वो बेचारी करती भी क्या? मन ही मन कुढ़ कर रह जाती! आखिर उससे रहा नहीं गया...| एक दिन उसने हिम्मत करके धना से कह दिया : 'तुम्हें इस तरह गाढ़ी मजदूरी करते हुए शरम नहीं लगती? धन के लोभ में तुम्हारी बुद्धि जड़-सी हो गयी है...। अपने घर में अपने बाप-दादों का कमाया हुआ ढेर सारा धन है...। फिर भी तुम पुण्य-कार्य में एक भी पाई खर्च नहीं करते हो...| खुद न तो अच्छा खाते हो...न अच्छा कभी कुछ पहनते हो...| यह सब का सब यों का यों छोड़कर ही एक दिन जाना पड़ेगा! मौत के बाद क्या साथ ले जाना है? कफन के टुकड़े तो जेब भी नहीं होती! तुम्हारे पुरखों की जैसी गति हुई वैसी ही तुम्हारी होगी! अच्छा हो... तुम जरा विवेकवान बनो! धन्या ने देखा तो धना का चेहरा उतरा हुआ था... उसके चेहरे पर उदासी छाई हुई थी! धन्या ने पूछा : _ 'क्या हुआ? एकदम यों उदास क्यों हो गये हो? कुछ नुकसान हुआ है क्या? किसी ने तुम्हारा अपमान किया है क्या? बात क्या है?' धना ने कहा... 'नहीं रे... तू कहती है वैसा तो कुछ नहीं हुआ है, पर तूने आज उस ब्राह्मण को मुठ्ठी भरकर जो आटा दे दिया... यह देखकर मुझे बड़ी बेचैनी हो रही है। पैसे को इस तरह लुटाना मुझे जहर से भी खारा लगता है! तू जानती नहीं है... अरे...धन ही तो आदमी की बुद्धि है...धन ही रिद्धि है और धन ही तो सिद्धि है...| धन ही तो अपनी रक्षा करता है...। अरे पगली! धन ही For Private And Personal Use Only
SR No.009636
Book TitleMayavi Rani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages155
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size1 MB
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