SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 31
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मायावी रानी और कुमार मेघनाद २१ इसकी आँखों से आँखें मिलाने की भी हिम्मत नहीं जुटा पाई । और फिर इसके हृदय में धर्म बसा हुआ है। मैं इसका कुछ भी नहीं बिगाड़ सकी! फिर मैंने मदनमंजरी के रूप में, अनेक प्रकार के हावभाव करके कुमार को वश में करने की कोशिश की। पर कुमार की पलकों में भी प्रेम या आकर्षण नहीं जग पाया मेरे प्रति! यह कुमार तो मेरू पर्वत जैसा अडिग और निश्चल है। क्या तूफानी हवा या आँधी-अँधड़ में पर्वत कभी हिलते भी हैं ? इस कुमार का दिल तो वज्र सा सख्त है...। वरना तो कभी का मेरे नाज नखरे से पसीज गया होता। यह मेरे रूप में बँध गया होता और मैं इसका खून पी लेती ! पर हे नागेन्द्र, मुझ पर कृपा करो। मेरे गुनाहों को माफ कर दो...। अब मैं इन्हें कभी नहीं सताऊँगी...।' नागेन्द्र से क्षमा माँगकर उस राक्षसी ने मेघनाद और मदनमंजरी से भी क्षमा माँगी। उसने कुमार को ' त्रैलोक्यविजय' नामक हार भेंट दिया । उसने कहा : 'कुमार, इस हार को पहन कर तू युद्ध के मैदान पर जायेगा तो तेरा अवश्यमेव विजय ही होगा । कभी तू युद्ध में पराजित नहीं हो सकेगा!' यों कहकर राक्षसी वहाँ से अदृश्य हो गई। नागराज भी दोनों को आशीर्वाद देकर अदृश्य हो गये । एलापुर में छह महीने बीत गये । कुमार मेघनाद अपने वतन रंगावती नगरी जाने के लिये उत्सुक हुआ । उसने शीघ्र ही प्रस्थान के लिये आदेश दिया। सभी तैयार हो गये और प्रयाण प्रारंभ हो गया । केवल तीन ही दिन में वे रंगावती नगरी के समीप पहुँच गये। कुमार ने अपने विचक्षण एवं मधुरभाषी राजदूतों को अपने पिता महाराजा लक्ष्मीपती की सेवा में भेजा । उन्होंने जाकर महाराजा को कुमार मेघनाद के आगमन के समाचार दिये । महाराजा लक्ष्मीपति तो समाचार सुनकर खुशी से पुलकित हो उठे। रानी कमलादेवी भी अपने लाड़ले के आगमन का समाचार जानकर आनंद से पागल हो उठी। दोनों अपने बेटे को नगर में लिवा लाने के लिये सज-धज कर नगर के बाहर आये । कुमार भी अपने विशाल काफिले के साथ रंगावती नगरी के बाहर पहुँच गया था। उसने दूर से ही देखा अपने माता-पिता को आते हुए ... । वह और मदनमंजरी दोनों तुरंत रथ में से उतर गये। वे पैदल चलकर आये और लक्ष्मीपति के चरणों में वंदना की । मदनमंजरी दूर खड़ी रही । मेघनाद ने पिता के चरण पकड़ लिये । राजा ने मेघनाद को दोनों हाथों से उठाकर अपने सीने For Private And Personal Use Only
SR No.009636
Book TitleMayavi Rani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages155
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy