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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मायावी रानी और कुमार मेघनाद ९ के द्वारा उसका मुँह भर देना ! उसका मुँह बन्द हो जायेगा ! तब अपने आप उसकी शक्ति नष्ट हो जायेगी... शक्ति नष्ट होते ही वह वहाँ से भाग जायेगी... और इस तरह राजकुमारी को वापस लाया जा सकेगा। महाराजा मदनसुन्दर और सभी लोग ऊँची साँस में सारी बाते सुनते रहे । उनके विस्मय की सीमा न रही । महाराजा ने कहा : 'कुमार, तेरा ज्ञान अद्भुत है! तेरी जितनी प्रशंसा करूँ उतनी कम है ! राजकुमारी का वृत्तांत कहकर तूने हमें आश्वस्त किया है । हमारी आधी चिन्ता तो दूर हो ही गयी है... । वत्स, अब तू ही उस रत्नसानु पर्वत पर जाकर राजकुमारी को वापस ले आ! हमारे मुरझाये हुए प्राणों को प्रफुल्लित कर । सभी कलाओं में तू निपुण है! तेरे सिवा और कोई आदमी इस काम को करने में समर्थ है कहाँ!' मेघनाद ने कहा : ‘महाराजा, आप तनिक भी चिंता न करें। मैं राजकुमारी की प्रतिज्ञा पूरी करके ही रहूँगा । आप एक सौ श्रेष्ठ सैनिक तैयार कीजिये । मैं लकड़ी के गरुड़पक्षी तैयार करता हूँ । उन पर सवारी करके उन सौ सैनिकों के साथ मैं रत्नसानु पर्वत पर जाऊँगा ।' राजा ने सौ चुनंदे सैनिकों को शस्त्रसज्ज होने की आज्ञा दी। मेघनाद ने अपनी अपूर्व शिल्पकला से लकड़ी के एक सौ एक गरुड़ बना दिये। उन सब में ऐसी यंत्र रचना की कि वे आकाश में उड़ सकें! मुख्य गरुड़ पर खुद मेघनाद बैठा। उसने अपने साथ एक हजार बाण लिये और प्रचंड धनुष भी अपने कंधे पर लटका दिया। महाराजा को प्रणाम करके उसने अपने गरुड़ को आकाशमार्ग में गतिशील किया। उसके पीछेपीछे सौ सैनिकों के गरुड़ उड़ने लगे। देखते ही देखते वे सब गरुड़ आकाश में अदृश्य हो गये। राजा को, रानी को और सभी को पूरा भरोसा हो गया था कि 'मेघनाद जरुर राजकुमारी को लेकर ही वापस आयेगा ।' उन्होंने मेघनाद की कला और उसका ज्ञान नजरों से देखा था! समग्र नगर में आनन्द की लहर छा गई थी । परंतु वे बेचारे राजा और राजकुमार जो कि बड़ी आशा लेकर आये थे राजकुमारी के स्वयंवर में, उनकी खुशी तो कपूर बन कर उड़ गयी। फिर भी मेघनाद के ज्ञान से, उसकी कला से, उसके पराक्रम से वे सब काफी प्रभावित हुए थे । इसलिये वे अपने-अपने For Private And Personal Use Only
SR No.009636
Book TitleMayavi Rani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages155
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size1 MB
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