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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मायावी रानी और कुमार मेघनाद ___ महामंत्री की घोषणा सुनकर वहाँ पर उपस्थित सभी राजाओं के चेहरे पर हवाईयाँ उड़ने लगी...| सभी हाथ मसलने लगे...| जमीन पर नजरें टिका कर सभी सर झुकाये बैठे रहे। मूंछों पर ताव देने वाले बड़े-बड़े शूरवीर राजकुमारों के चहेरों पर कालिख-सी पुत गयी...! दो-पाँच मिनट तक सारी सभा में एकदम खामोसी का आवरण उतर आया। पर यकायक राजकुमार मेघनाद अपने आसन पर से खड़ा हुआ और...बड़ी दृढ़ता के साथ धीमे-धीमे कदम बढ़ाता हुआ...वह महाराज मदनसुंदर के पास आकर खड़ा हो गया । महाराजा को प्रणाम करके उसने कहाः __'महाराजा, रंगावती के महाराजा लक्ष्मीपति मेरे पिता हैं | महारानी कमलादेवी मेरी जनेता हैं | मेरा नाम मेघनाद है। मैं राजकुमारी की प्रतिज्ञा पूरी करने की ख्वाहिश रखता हूँ। यहाँ उपस्थित आप सभी के समक्ष मैं निमित्तशास्त्र के आधार पर राजकुमारी का वृत्तांत आपको कहना चाहता हूँ।' महाराजा मदनसुन्दर सिंहासन पर से खड़े हो गये। उन्होंने मेघनाद को अपने बाहुपाश में जकड़ लिया। उनकी आँखो में खुशी के आँसू भर आये। उनका गला भर आया । भर्रायी आवाज में वे बोले : 'कुमार, महाराजा लक्ष्मीपति तो मेरे परम आत्मीय हैं। उनके साथ मेरा प्रेम का संबंध है। मुझे लगता है वत्स, अभी मेरी किस्मत जाग रही है... वरना तू यहाँ नहीं आता! तेरी आकृति ही तेरे पराक्रम का परिचय दे रही है कि तेरी शक्ति विश्व में अजेय है...! कुमार, मुझे क्षमा करना... मैं इतने सारे राजाराजकुमारों की भीड़ में न तो तुझे पहचान पाया... न ही तेरा उचित स्वागत कर सका! बेटा, पुत्री के विरह से हम माता-पिता अत्यंत व्यथित हैं...। पुत्री के बगैर हमारी जिन्दगी का कोई मतलब ही नहीं रहा है...। कुमार, तू जल्दी कह बेटा! मेरी वह लाड़ली राजकुमारी जहाँ है वहाँ कुशल तो है ना? उसे कुछ हुआ तो नहीं है ना?' ___ अन्तःपुर में महारानी प्रियंगुमंजरी को कुमार मेघनाद के समाचार मिल गये थे। महारानी बावरी-सी होकर दौड़ती हुई आकर स्वयंवर मंडप में परदे की ओट में आसन पर बैठ गयी थी। राजमहल के एक-एक स्त्री-पुरुष आकर मंडप में जमा हो गये थे। सभी राजा व राजकुमार भी राजकुमारी के बारे में जानने के लिये उत्सुक होकर मेघनाद को ताक रहे थे। For Private And Personal Use Only
SR No.009636
Book TitleMayavi Rani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages155
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size1 MB
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