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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पराक्रमी अजानंद १३४ अजानंद ने तुरंत उस सरोवर का पानी पिलाकर उस आदमी को वापस हाथी बना दिया। विमलवाहन खुश हो उठा। इधर अजानंद गुप्तरूप से बाहर निकल गया। बाहर निकल कर आसपास में जो भी सरोवर थे कि जहाँ पर दुश्मनों के हाथी-घोड़े पानी पीते थे, उन सभी सरोवरों में उसने अग्निवृक्ष के फल का थोड़ा-थोड़ा चूर्ण डाल दिया! और अपने साथ के मगरनर को कहा : ___ 'जो-जो हाथी-घोड़े पानी पीएँगे वे सब मनुष्य हो जाएँगे। तु उन सब आदमियों को अपने कब्जे में रखना...फिर मैं आकर सब सम्हाल लूँगा।' नगर में आकर अजानंद ने विमलवाहन से कहा : 'अब तू सेना के साथ दुश्मनों पर टूट पड़ना। मैं मेरे हजारों सैनिकों के साथ पीछे से धावा बोल दूंगा।' । अजानंद ने महामंत्री से कहकर शस्त्रभंडार में से शस्त्र निकलवाकर, शत्रुओं के जिन हाथी-घोड़ों को आदमी बनाया था उनको देकर शस्त्रसज्ज कर दिये। इस तरह उसने एक लाख सैनिक तैयार किये | दुश्मनों के न तो हाथी रहे, न घोड़े! दुश्मनों की हिम्मत टूट गई। इतने में तो आगे से राजा विमलवाहन की और पीछे से अजानंद की विराट सेना उन पर टूट पड़ी! विमलवाहन और अजानंद ने दुश्मनों की बोटी-बोटी करके रख दी! जो सैनिक बचे वे सब शरण में आ गये। विमलवाहन ने शत्रुओं पर ज्वलंत फतह प्राप्त की। वह अजानंद के पास जाकर उसके पैरो में गिरा | अजानंद ने उसे खड़ा किया और अपने सीने से लगाया। नगर में भव्य विजयोत्सव के साथ उनका प्रवेश हुआ। चारों तरफ खुशी का समंदर लहरा उठा । ८. अजानंद राजा बन गया! विमलवाहन ने अजानंद से कहा : 'दोस्त, तूने मेरे ऊपर कितने उपकार किये हैं? मुझे नया जीवन दिया । मुझे राज्य दिया । युद्ध में विजय प्राप्त करवायी। मैं तेरे उपकारों को कभी नहीं भूल सकूँगा। तेरे उपकारों का बदला मैं चुकाऊँगा भी तो कैसे? खैर, यह मेरा राज्य मैं तुझें देता हूँ। सचमुच तो तू ही राज्य का हकदार है। अब तू यहीं रहना। राजा बनकर राज्य करना । मैं तेरा दोस्त...तेरा साथी बनकर तेरी सेवा करूँगा।' For Private And Personal Use Only
SR No.009636
Book TitleMayavi Rani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages155
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size1 MB
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