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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पराक्रमी अजानंद १२४ पानी मेरे पास है...! रूप बदलने की गुटिका मेरे पास है और मेरी किस्मत के बल पर ही ये दोनों आदमी मेरे सेवक बन कर घूम रहे हैं। लगता है मेरा भाग्य अखंड है। पर न जाने मेरे माता-पिता कहाँ पर होंगे? मेरे बगैर वे बेचारे कितने दुःखी होंगे...क्या पता कब मैं उनसे मिल पाऊँगा?' यों सोचते-सोचते कब 'जयन्तीनगर' आ गया इसका पता ही न लगा! अजानंद ने अपने दोनों साथियों से कहा : 'तुम यहीं पर नगर के बाहर रुक जाओ | मैं गाँव में जाता हूँ| फिर तुम्हें ले जाऊँगा।' अजानंद ने नगर में प्रवेश किया। नगर सुन्दर था। साफ सुथरे रास्ते थे। अजानंद रास्ते पर चला जा रहा हैं...। उसने एक भव्य हवेली देखी। हवेली के बाहर एक सेठ बैठे हुए थे। अजानंद ने उन्हें प्रणाम किया और पूछा : ____ 'महानुभाव! हम परदेशी हैं...मैं और मेरे दो साथी। हम तीन लोग हैं। क्या इस नगर में रुकने के लिए कोई धर्मशाला या बगीचा वगैरह है, जहाँ पर कि हम ठहर सकें!' उस सेठ का नाम बुद्धिधन था। उसने अजानंद को देखा | उसका सुन्दरस्वस्थ शरीर देखा। उसके देह पर के दिव्य वस्त्र देखे। उसे लगा कि 'यह कोई धनवान आदमी लगता है...मेरी हवेली में ही अगर इसे ठहरा दूं तो मुझे लाभ ही होगा।' यों सोचकर उसने अजानंद से कहा : 'परदेशी कुमार, तुम मेरी हवेली में ही आराम करो। जितने दिन रहना हो खुशी से रहो।' अजानंद ने अपने दोनों साथियों को बुला लिया। तीनों ने बुद्धिधन श्रेष्ठि की हवेली में निवास किया। अजानंद ने अपने मन में साचा कि : _ 'यह वणिक-व्यापारी आदमी है। यदि मैं अपनी कोई कीमती वस्तु इसको सौपूँगा तो इसको हमारे ऊपर पूरा भरोसा हो जाएगा!' अजानंद ने अपना कीमती हार सम्हालने के लिए बुद्धिधन सेठ को दिया । बुद्धिधन खुश हो उठा। ___एक दिन अजानंद को नाखून काटवाने के लिए नाई के पास जाना था। उसने बन्दर-आदमी को अग्निवृक्ष के फल का चूर्ण सम्हालने के लिए दिया और वह नाई के घर पर गया। नाखून कटवा कर वह बाहर निकला | इतने में न जाने कैसे यकायक उसकी कमर पर बंधे हुए दो दिव्य वस्त्र सरक कर गिर गये | अजानंद को ख्याल ही नहीं आया इस बात का | नाई ने दोनों कपड़े For Private And Personal Use Only
SR No.009636
Book TitleMayavi Rani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages155
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size1 MB
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