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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पराक्रमी अजानंद १२२ पर्वत के चारोतरफ गंगा जैसी विशाल नदी बह रही है... क्या यह सब स्वाभाविक है...? पहले से ही ऐसा है?' देव ने कहा : 'कुमार, यह सब स्वाभाविक नहीं है! परंतु मनुष्यों के द्वारा निर्मित हुआ है। मेरी बात ध्यान से सुन, भगवान ऋषभदेव के बाद में भगवान अजितनाथ हुए | उनके भाई थे सगर चक्रवर्ती! सगर चक्रवर्ती के साठ हजार पुत्र इस पर्वत की यात्रा करने के लिए आये हुए थे। उन्होंने भावपूर्वक इस तीर्थ की यात्रा की। उन्होंने अपने मन में सोचा : 'यह सोने का मंदिर...ये रत्नों की मूर्तियाँ देखकर आदमी का मन ललचा जाएगा! संभव है... लोग या तो यह मंदिर तोड़कर सोना ले जाएँ, और रत्नों की मूर्तियाँ चुरा ले जाएँ...। इसलिए हमको इस तीर्थ की सुरक्षा करनी चाहिए। उन्होंने, मनुष्य इस पर्वत पर पहुँच ही नहीं सके...चढ़ ही नहीं सके इसलिए एक-एक योजन का अंतर रख कर आठ सीढ़ियाँ बनाई और गंगा नदी में से नहर खोद कर पानी ले आये । इससे पहले सगर चक्रवर्ती के पुत्रों ने पर्वत के चारोतरफ खाई भी खोद डाली...और जोर-शोर से गरजता हुआ पानी चारों तरफ की खाई में फैल गया। हालाँकि इस काम को करते हुए सगर चक्रवर्ती के उन साठ हजार बेटों को अपनी जान की बाजी लगानी पड़ी। प्राणों का बलिदान देना पड़ा!' 'वह कैसे?' अजानंद ने आश्चर्य से पूछा। 'जब सगरपुत्रों ने पर्वत के इर्द-गिर्द खाई खोदी.. इतनी गहरी खाई खोदी कि पाताललोक में रहनेवाले नागकुमार देवों के भवन पर मिट्टी गिरने लगी। नागकुमार देव पृथ्वी पर आये...उन्होंने सगरपुत्रों को चेतावनी दी...और कहा : 'तुमने इतनी गहरी खाई खोद कर हमारा अपराध किया है। हम तुम पर क्रोधित हुए हैं पर तुम भगवान ऋषभदेव के वंश में पैदा हुए हो...भगवान अजितनाथ के भतीजे हो...इसलिए एक बार तो हम तुम्हें माफ कर देते हैं...अब आगे से ऐसी गलती दोहराना मत ।' यों कहकर नागकुमार देव अपने स्थान पर चले गये। उनके जाने के बाद सागरपुत्रों ने सोचा...हम ने खाई तो काफी गहरी खोद डाली... पर बरसों बाद कभी जबरदस्त आँधी-बवडर मचेगा तब शायद यह खाई भर भी जाए...यदि हम गंगा का पानी इस खाई में ले आयें तो फिर भविष्य में कोई चिंता नहीं रहेगी...नागकुमार देव उन्हें जो भी करना होगा...करेंगे। हम तीर्थरक्षा के लिए काम कर रहे हैं, तो उसे पूरा करेंगे ही।' For Private And Personal Use Only
SR No.009636
Book TitleMayavi Rani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages155
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size1 MB
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