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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मायावी रानी और कुमार मेघनाद जाना चाहिए उस स्वयंवर में! किस्मत की परीक्षा ऐसी घटनाओं में ही तो होती है!' कुमार सोच रहा है कि 'यदि मैं अपने माता-पिता को पूछने के लिये जाऊँगा तो वे मुझे मना ही करेंगे। उन्हें मुझ पर अतिशय प्यार है। एक दिन भी मुझे वे अपनी आँखो से अलग करना नहीं चाहते! इतनी दूर मुझे भेजने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता!' ___ मध्यरात्रि के समय राजकुमार मेघनाद अकेला ही राजमहल में से गुपचुप निकल गया। चंपानगरी की दिशा में उसने प्रयाण किया। वह आगे कदम बढ़ाने लगा। उसे सुन्दर-बढ़िया शुकन होने लगे। शकुनशास्त्र में वह निष्णात था। उसके मन में अनेक अव्यक्त आनंद उछलने लगा। ___ अनेक गाँव-नगरों में से गुजरता हुआ वह आगे बढ़ता रहता है। भूख लगती है, तब उसे कहीं से भोजन मिल ही जाता है, प्यास लगती है, तब पानी मिल जाता है! पुण्यशाली को क्या नहीं मिलता? सब कुछ स्वाभाविक रूप से मिल जाता है उसे! चलते-चलते पन्द्रह दिन बीत गये। कुमार एक भयंकर जंगल से गुजर रहा था। रात घिर आयी थी। रास्ता डरावने जंगल में से होकर गुजरता था। अंधेरे में रास्ता नहीं सूझ रहा था। कुमार ने सोचा : 'थोड़ी देर आराम कर लूँ... वैसे भी काफी थकान लगी है।' एक वृक्ष के नीचे मेघनाद लेट गया । थकान के कारण वह गहरी नींद में सो गया। आधी रात का समय हुआ । कुमार के पास एक भयंकर राक्षस प्रगट हुआ! बड़े-बड़े दाँत । लम्बे-लम्बे और पीले-पीले बाल! लाल-लाल आँखे! लम्बेलम्बे नुकीले नाखून! और चट्टान जैसा ऊँचा लम्बा शरीर! उसने सोये हुए मेघनाद को उठाया और कहा : 'ए लड़के... तू तेरे भगवान को याद कर ले!' कुमार सहसा जाग उठा। उसने राक्षस को देखा। उसे डर तो बिल्कुल नहीं लगा...क्योंकि वह निडर था... पराक्रमी था। वह खड़ा हो गया और दोनों हाथ जोड़कर सर झुकाकर नमस्कार करके बोला : 'कहिए राक्षसराज! मैं आप की क्या सेवा करूँ?' ___ 'अरे... लड़के... मुझे जोरों की भूख लगी है... मेरे पेट मे आग लगी है, मैं तुझे अभी ही खा जाऊँगा... मैं तेरी चटनी बना डालूँगा। मुझे तेरी मीठीमीठी गंध आ रही है...।' For Private And Personal Use Only
SR No.009636
Book TitleMayavi Rani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages155
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size1 MB
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