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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पराक्रमी अजानंद ९८ ___ अजानंद हिम्मत करके उनके निकट गया। दोनों हाथ जोड़कर चारों को नमस्कार किया। उन्होंने अजानंद की ओर अनमनेपन से देखा । अजानंद ने पूछा : 'महाशय, यह अग्निकुंड यहाँ पर क्यों बनाया गया है? और आप सब इतने निराश होकर यहाँ पर क्यो बैठे हो? यदि आपको एतराज न हो तो मुझे यह बताने का कष्ट करे ।' __उन चारों में से एक जो बड़ी उम्र का व्यक्ति था... उसने कहा : 'अरे भाई, तू अभी काफी छोटा है...हमारा काम तो बहुत बड़ा और कठिन है। तुझे क्या कहेंगे? तू हमारा काम क्या करेगा? तू तेरा रास्ता नाप...भाई...हमारी चिंता मत कर!' अजानंद ने कहा : 'आपकी बात सही है... बड़े काम बड़ों से ही होते हैं...छोटों से नहीं होते... परन्तु कुछ वैसे भी बड़े काम होते हैं जो बड़ों से नहीं हो पाते...पर छोटे उन्हें कर पाते हैं। पत्थर को तोड़ने के लिये भाला काम नहीं लगता...जबकि छोटी सी छैनी उसे तोड़ देती है!' ___ चारों आदमी अजानंद की मीठी और हिम्मतभरी बात सुनकर एक-दूसरे के सामने देखने लगे| उस आदमी ने कहा : ___'तू बच्चा है... पर बातें तो बड़ी काम की करता है... तू बहादुर दिखता है...इसलिये तुझे हमारी मुश्किली की बात करता हूँ। पर पहले तेरा नाम बता दे!' 'मेरा नाम है अजानंद!' नाम बताकर वह उन चारों के समीप जाकर बैठ गया। बड़ी उम्रवाले आदमी ने अपनी मुश्किली की बात कहनी शुरू की। २. अग्निवृक्ष का फल 'हम चार भाई हैं। हम चंपानगरी में रहते हैं। हमारे सबसे छोटे भाई के वहाँ एक सुन्दर और सलोने पुत्र का जन्म हुआ ।' उसने अंगुली से अपने छोटे भाई की तरफ इशारा करके बताया। ___ 'वह पुत्र एक दिन अचानक बीमार पड़ गया। रोग काफी भंयकर था। हमने दवाई करने में कोई कसर नहीं रखी। तरह-तरह के वैद्यों को बुलवाया और उपचार करवाये | पर रोग इतना हठीला था कि कोई उपचार कारगर साबित नहीं हुआ। हम चारों भाईयों के परिवार में यह एकमात्र लड़का था। हम किसी भी कीमत पर उसको बचाना चाहते थे। काफी कोशिशे करने के For Private And Personal Use Only
SR No.009636
Book TitleMayavi Rani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages155
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size1 MB
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