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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पत्र १० ७७ प्रत्यक्ष फल बतायाआणापालन चित्तप्रसन्नी... १. जिनाज्ञा का पालन होता है, २. चित्त की प्रसन्नता बढ़ती है। प्रतिदिन परमात्म-पूजन करने की पूर्ण ज्ञानी पुरुषों की आज्ञा है। प्राचीन धर्मग्रन्थों से इस आज्ञा का ज्ञान होता है। परमात्म-पूजन से अशान्त मन शान्ति पाता है | उद्विग्न चित्त हर्षान्वित होता है। परोक्ष फल यानी परंपर फल बताते हैंमुगति, सुगति, सुरमंदिर रे... १. मुक्ति = मोक्ष मिलता है, अथवा २. श्रेष्ठ मनुष्य जन्म [सुगति] मिलता है, अथवा ३. देवगति प्राप्त होती है। १. अंगपूजा, २. अग्रपूजा और ३. भावपूजा बताकर अब चौथा प्रकार बताते हैं, 'प्रतिपत्ति पूजा' का। तुरियभेद पडिवत्ति-पूजा उपशम खीण सयोगी रे... यह प्रतिपत्ति पूजा करनेवाली होती हैं, उत्तम आत्मायें। गुणस्थानक की दृष्टि से ग्यारहवें, बारहवें और तेरहवें गुणस्थानक पर रही हुई आत्मायें यह प्रतिपत्तिपूजा करती हैं। कुछ न करने रूप यह पूजा है! ग्यारहवें गुणस्थानक की अवस्था में आत्मा का मोह उपशान्त होता है, बारहवें गुणस्थानक की अवस्था में मोह नष्ट हो जाता है और तेरहवें गुणस्थानक पर आत्मा सर्वज्ञवीतराग बन जाती है। तेरहवें गुणस्थानक को 'सयोगी' गुणस्थानक कहा गया है। यह पूजा अभेदभाव की पूजा है। आत्मा और परमात्मा का भेद वहाँ नहीं रहता है। 'आत्मा ही परमात्मा' होता है, इस पूजा में | इस पूजा से आत्मा का मोह उपशान्त होता है, नष्ट होता है और वीतरागता की अनुभूति होती है। ये चार प्रकार की पूजायें 'श्री उत्तराध्ययन सूत्र' में बतायी गई हैं-ऐसा कहकर वे 'आगमप्रमाण' प्रस्तुत करते हैं। परमात्मा की द्रव्य-भाव पूजा का विधान 'श्री भगवतीसूत्र' में भी प्राप्त होता है। परमात्मपूजन का यह शुभ कार्य भौतिक-आध्यात्मिक सभी सुखों का विशेष कारण है। For Private And Personal Use Only
SR No.009635
Book TitleMagar Sacha Kaun Batave
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size2 MB
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