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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पत्र ९ उसका शुभ-श्रेष्ठ फल अवश्य प्राप्त होता है- उसको फल-अवंचक कहते हैं | ये तीन अवंचक योग, उसी आत्मा को प्राप्त होते हैं कि जो आत्मा अनंत पापकर्मों से मुक्त होती है...जिनकी मुक्ति निकट के भविष्य में निश्चित होती योगीश्वर श्री आनन्दघनजी, इसी तरह परमात्मा का योग-संयोग चाहते हैं। परमात्मा से अवंचक योग चाहते हैं। प्रेरक अवसर जिनवरु मोहनीय क्षय जाय कामितपूरण सुरतरु आनन्दघन प्रभु पाय... कभी...किसी मनुष्य जन्म में...जिनेश्वर भगवंत का संयोग मिल जाय... मैं उनकी चरणसेवा करूँगा, उनकी आज्ञाओं का पालन करूँगा तो अवश्य सभी पापों का मूल मोहनीय कर्म नष्ट होगा। यही फल-अवंचक योग मुझे चाहिए। यूँ भी परमात्मा तो 'कामित-पूरण सुरतरू' हैं ही। इच्छाओं को पूर्ण करने वाले वे कल्पवृक्ष हैं। मेरी इच्छा को वे अवश्य पूर्ण करेंगे। उनकी प्रेरणा से मेरा मोहनीय कर्म नष्ट होगा...मुझे वीतरागता और निर्वाण प्राप्त होगा। परमानन्दमय प्रभु के चरण-कमल कल्पवृक्ष-समान हैं। मेरी हार्दिक इच्छा अवश्य पूर्ण होगी। इसलिए हे सखी! मुझे चन्द्रप्रभ स्वामी के चन्द्र समान शीतल मुख का दर्शन करने दे। चेतन, चन्द्रप्रभ स्वामी की इस स्तवना के अवगाहन में मजा आ गया न? परमात्मा का दर्शन-पूजन कैसे किया जाना चाहिए, वह बात श्री सुविधिनाथ भगवंत की स्तवना में बतायेंगे। तेरी कुशलता चाहता हूँ - प्रियदर्शन For Private And Personal Use Only
SR No.009635
Book TitleMagar Sacha Kaun Batave
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size2 MB
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