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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पत्र ५ ३४ 'आगमवादे हो गुरुगम को नहीं, ए सबलो विषवाद' __ शास्त्रों को-आगमों को समझाने वाले, शास्त्रों का सही अर्थ बताने वाले 'गुरु' ही आज नहीं मिल रहे हैं...। परमात्मदर्शन जैसे अगम-अगोचर कार्य में गुरु का मार्गदर्शन तो चाहिए न? शास्त्रों के माध्यम से वैसा मार्गदर्शन देने वाले गुरु कहाँ हैं? ___ चेतन, यह बात पढ़कर तुझे आश्चर्य होगा। परन्तु कवि की बात यथार्थ है। श्री आनन्दघनजी का समय ही वैसा था। उत्सव-महोत्सव तो बहुत होते थे... परन्तु ज्ञानमार्ग की घोर उपेक्षा हो रही थी। उपाध्याय श्री यशोविजयजी एवं श्री आनन्दघनजी जैसे ज्ञानी पुरुष तो गिनती के ही थे। जैनागमों का अध्ययन-मनन-परिशीलन नहींवत् हो गया था। ऐसी परिस्थिति में परमात्मदर्शन' के विषय में कौन शास्त्रीय मार्गदर्शन दे? यही प्रबल अवरोध, कवि को लगता है। कवि निराश हो जाते हैं। निराशा के सूरों में गाते हैं : घाती डुंगर आडा अति घणा, तुज दर्शन जगनाथ। __ प्रभो! जगन्नाथ! क्या करूँ? आपके पास पहुँचने की तीव्र इच्छा है... नहीं पहुँच पाने की तीव्र वेदना है हृदय में...| रास्ता विकट है। रास्ते में विकट पहाड़ पड़े हैं। उन पहाड़ों का उल्लंघन करने का सामर्थ्य नहीं है...। 'घाती डुंगर' का अर्थ है चार घाती कर्म । ज्ञानावरण, दर्शनावरण, मोहनीय और अन्तराय कर्म | इन चार घाती कर्मों के पहाड़ सामने खड़े दिखते हैं, श्री आनन्दघनजी को। बड़े विकट हैं, ये पहाड़ | आत्मा जब इन चार कर्मों का नाश करता है, तब उसे अनन्त ज्ञान, अनन्त दर्शन, अनन्त शक्ति और वीतरागता प्राप्त होती है...। तब अभिनन्दन परमात्मा के दर्शन की तरस मिट जाती है। ___ कवि कहते हैं कि पहाड़ों की विकटता जानते हुए भी, साहस करके आगे बढ़ता हूँ... परन्तु साहस में कोई साथी भी चाहिए न? 'धिटाई करी मारग संचरूं, सेंगु कोई न साथ...' _ विकट मार्ग की यात्रा में कोई साथी-सहायक नहीं है... क्या करूँ? घाती कर्मों का नाश करने का उपाय है, सम्यग ज्ञान-दर्शन और चारित्र। इसको For Private And Personal Use Only
SR No.009635
Book TitleMagar Sacha Kaun Batave
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size2 MB
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