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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पत्र ५ ३१ ।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। ० कवि को पुनः-पुनः संसार में जन्म-मृत्यु नहीं पाना है। उन्होंने जन्म__ मृत्यु की प्यास को मिटाने की बात की है। यदि परमात्मदर्शन का कार्य संपन्न हो जाय तो वह प्यास समाप्त हो सकती है। ० हे परमात्मन्, आपको मुझ पर कृपा बरसानी होगी। आपको ही मेरे ऊपर अचिन्त्य अनुग्रह करना होगा। आपके दर्शन के लिए आपको ही मेरे प्रति दया करनी होगी। मेरे हृदय की तड़पन तो देखो... मेरी ___ व्यथा-वेदना तो देखो.. । । । । । । । । । । । । । । । । । । । । । । । । । । । । । । पत्र : ५ श्री अभिनंदनस्वामी स्तवना प्रिय चेतन, धर्मलाभ! तेरा भावपूर्ण पत्र मिला! श्री आनन्दघनजी की ये स्तवनायें गहन-गंभीर हैं, इस बात में दो राय नहीं है, परंतु ऐसी भी नहीं हैं कि बुद्धिमान मनुष्य समझ ही नहीं पाये । और भैया! समुद्र की सतह पर कब तक तैरते रहेंगे? भीतर भी कभी गोता लगाने का साहस करना चाहिए ना? साहस तो करना ही होगा। परमात्मा को पाने के मार्ग पर साहसिक ही चल सकते हैं। __ श्री अभिनन्दन स्वामी की स्तवना में, कवि परमात्मदर्शन की उत्कटता अभिव्यक्त करते हुए, दर्शन-प्राप्ति की दुर्लभता बताते हैं। परमात्मदर्शन की प्राप्ति क्यों दुर्लभ है-यह बात इन्होंने तात्त्विक भूमिका पर बताई है। जीवनपर्यंत तत्त्वचिंतन में ही डूबे रहने वाले श्री आनन्दघनजी दूसरी बातें तो करेंगे ही कैसे? अध्यात्ममार्ग के गूढ़ तत्त्वों के ज्ञाता योगीजन से अपन को दूसरी अपेक्षा रखनी ही नहीं चाहिए। उनकी वाणी अगम-अगोचर की बातें करती हैं। उनका एक-एक शब्द रहस्यों से भरा हुआ होता है। उन रहस्यों की गुफा में प्रवेश करना भी रोमांचक होता है। निर्भय-निःशंक होकर प्रवेश करेंगे तो कुछ 'दिव्य' पायेंगे... अवश्य । For Private And Personal Use Only
SR No.009635
Book TitleMagar Sacha Kaun Batave
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size2 MB
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