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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५ पत्र ४ मोक्ष के प्रति रुचि नहीं है तो चलेगा, परंतु द्वेष तो नहीं ही होना चाहिए । चूंकि जिनकी सेवा करनी है, जिनके साथ प्रीति का संबंध बाँधना है... उनका जो स्थान है... वे जहाँ रहते हैं... उस मोक्ष के प्रति द्वेष करने से कैसे चलेगा? परमात्मा के साथ प्रीति करना है, तो परमात्मा के बताये हुए मोक्षमार्ग के प्रति भी द्वेष नहीं होना चाहिए, परमात्मा ने जिनके प्रति अनंत करुणा बहाई है, उस जीवसृष्टि के प्रति भी द्वेष नहीं होना चाहिए। 'खेद-प्रवृत्ति हो करतां थाकीये रे...' __ अपनी-अपनी भूमिका के अनुसार धार्मिक प्रवृत्ति करते-करते थक जाना, ऊब जाना... इसको कहते हैं, खेद। परमात्मा के साथ प्रीति होने पर और उनकी सेवा के लिए तत्पर बनने पर... थकान तो लगनी ही नहीं चाहिये। परमात्मा के बताये हुए धर्मानुष्ठान थके बिना करते रहना है। 'दोष-अबोध लखाव' परमात्मस्वरूप की सेवा करने के लिए मनुष्य में प्राथमिक योग्यतारूप अभय-अद्वेष और अखेद-ये तीन गुण आने के बाद, 'अबोध' नाम का दोष दूर होता है। अबोध यानी अज्ञानता । अज्ञानता का अर्थ है, मिथ्यात्व | मिथ्यात्व ही भवबीज है, अनादि संसारपरिभ्रमण का मूल कारण है। यह अबोधता, जीवात्मा को सच्चा परमात्मस्वरूप का ज्ञान नहीं होने देती है। सद्गुरु की पहचान नहीं होने देती है। सद्धर्म के प्रति श्रद्धावान् नहीं होने देती है। जब तक अबोधता का अंधकार जीवात्मा पर छाया हुआ रहेगा तब तक दोषों का समूह हटने वाला नहीं है। ऐसा यह अबोधता का दोष, अभयअद्वेष और अखेद गुणों के आविर्भाव के बाद दूर हो जाता है। कैसे दूर होता है उसकी शास्त्रीय प्रक्रिया बताते हुए आनन्दघनजी कहते हैंचरमावर्ते हो चरम करणे तथा रे, भव-परिणति परिपाक... चेतन, ये सारे शब्द जैन शास्त्रीय परिभाषा के हैं। 'चरमावर्त' शब्द काल/ समय के विषय में है, 'चरम करण' आत्मा की आध्यात्मिक पुरुषार्थ की प्रक्रिया का सूचक शब्द है। 'भव परिणति परिपाक' यह भी आत्मा की एक विशिष्ट अवस्था का द्योतक शब्द है । तुझे इन परिभाषाओं का अध्ययन करना होगा। For Private And Personal Use Only
SR No.009635
Book TitleMagar Sacha Kaun Batave
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size2 MB
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