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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७ पत्र ३ नहीं, वह तो 'अंधों के पीछे अंधों का चलना'-जैसी बात बन जायेगी। यदि परंपरा में चलने वाले लोग पहले से ही गलत मार्ग पर चले हुए हों तो? उनके पीछे चलने वाले गलत रास्ते पर ही चलेंगे। श्रमण भगवान महावीर प्रभु ने कहा है ‘अंधो अंध पहं निंतो दूरमद्धाण गच्छति। आवज्जे उप्पह जंतू अदुवा पंथाणु गामिए ।।' यदि अंध मनुष्य दूसरे अंध को मार्ग बताता है, तो वह दूसरे अंधे को जिनप्रणीत मार्ग से दूर ले जाता है | या तो उन्मार्गगामी बन जाता है, अथवा दूसरे ही मार्ग पर चल देता है। इसलिए मार्ग खोजने का कार्य पुरुष-परम्परा के माध्यम से नहीं करना चाहिए। वस्तुविचारे रे जो आगमे करी, चरणधरण नहीं ठाय... हालाँकि आनन्दघनजी पुरुष-परंपरा के अनुभवों को मानने वाले थे, परन्तु जो पुरुष-परम्परा जिनाज्ञानुसार नहीं होती, उसको वे अंधों की परम्परा कह कर अपनी नाराजगी व्यक्त करते हैं। आनन्दघनजी का जो समय था वह शिथिलता का समय था। साधु यति बने हुए थे। यति लोगों ने अपने मंत्रतंत्रादि के बल से जैन संघ को प्रभावित किया हुआ था। अपने स्वार्थों की संतुष्टि के सिवा कुछ नहीं था। कुछ गलत परम्पराएँ स्थापित हो गई थी... और वे ही मोक्षमार्ग के रूप में प्रसिद्ध हो गई थी। आनन्दघनजी ने तो जिनागमों का गहरा अध्ययन किया हुआ था। अन्ध-परम्परा को छोड़कर वे जब आगम ग्रन्थों के माध्यम से मार्ग देखते हैं, तब वे उदास हो जाते हैं। एक बात-अल्प बुद्धि वाले जीव आगमों को समझ नहीं सकते। दूसरी बातआगमों में बताये हुए मोक्ष मार्ग पर पैर रखने की भी शक्ति वर्तमानकालीन निःसत्त्व जीवों में नहीं है। आगम ग्रन्थों में जो चारित्रमार्ग बताया गया है, वह इतना दुष्कर है कि उसका यथार्थ पालन करना अशक्य लगता है। आगमों का ज्ञान होना आज भी संभवित है, परंतु उसी के अनुसार जीवन जीना असंभव सा लगता है। तो फिर किसके आधार पर मार्ग खोजूं? यदि मार्ग नहीं मिलता है तो मंजिल तक पहुँचने की मेरी तमन्ना मुरझा जायेगी क्या? तर्क विचारे रे वाद परंपरा... तो क्या तर्क के आधार पर मार्ग खोजा जाय? अध्यात्म मार्ग में तर्क का For Private And Personal Use Only
SR No.009635
Book TitleMagar Sacha Kaun Batave
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size2 MB
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