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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५ पत्र ३ पंथडो निहालुं रे बीजा जिन तणो, अजित-अजित गुणधाम। जे तें जित्या रे तेणे हुं जितीयो, पुरुष किस्युं मुज नाम? चरम नयणे करी मारग जोवतां, भूल्यो सयल संसार, जेणे नयणे करी मारग जोइये, नयण ते दिव्य विचार... पुरुष-परंपर अनुभव जोवतां, अंधोअंध पलाय, वस्तु विचारे जो आगमे करी, चरण धरण नहीं ठाय... तर्क विचारे रे वाद परंपरा, पार न पहोंचे रे कोय, अभिमत वस्तु रे वस्तुगते कहे, ते विरला जग जोय... वस्तु विचारे रे दिव्य नयण तणो, विरह पड्यो निरधार, तरतम जोगे रे तरतम वासना, वासित बोध आधार... काल-लब्धि लही पंथ निहालशुं, ए आशा अवलंब, ए जन जीवे रे जिनजी जाणजो, आनन्दघन मत अंब... चेतन, तेरे मन में एक प्रश्न पैदा हो सकता है : 'प्रीत की है ऋषभदेव से और मार्ग खोजते हैं, अजितनाथ के पास जाने का... यह कहाँ तक उचित है?' __ ऋषभ कहो या अजित कहो, दोनों सर्वज्ञ-वीतराग हैं, दोनों तीर्थंकर हैं, दोनों परमात्मस्वरूप हैं। मात्र नाम का भेद है, स्वरूप में कोई भेद नहीं है। कवि को परमात्म-स्वरूप से मतलब है। उनको २४ तीर्थंकरों के माध्यम से परमात्म-स्वरूप की ही स्तवना करनी थी। हे अजित! हे मेरे हृदयेश्वर! आप एक-दो या हजार-दो हजार गुणों से युक्त नहीं हैं, आप तो गुणों के धाम हो। अनन्त-अनन्त गुणों के धाम... आपका समग्र व्यक्तित्व ही गुणमय है। मैं आपके पास आने का मार्ग देखता हूँ... प्रभो! आप कैसे अजित बने? किनको जीतकर आप अजित बने...? आप जब माता विजयादेवी के उदर में थे तब शतरंज के खेल में हमेशा माता विजयादेवी राजा जितशत्रु को हराती थी। वे जीतती थी। अपने विजय की स्मृति में माता ने आपका नाम 'अजित' रखा! और आप वास्तव में अजित बने... आन्तर शत्रुओं को पराजित करके। श्रीमद् आनन्दघनजी अजित के मार्ग को मात्र ऊपर-ऊपर से नहीं देख रहे हैं... मार्ग अवलोकन करते हैं। जिस मार्ग पर हमें चलना है, For Private And Personal Use Only
SR No.009635
Book TitleMagar Sacha Kaun Batave
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size2 MB
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