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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पत्र २४ २१३ सर्वव्यापी कहो सर्वजाणगपणे, परपरिणमन सरूप सुज्ञानी..... पर रूपे करी तत्त्वपणुं नहीं, स्वसत्ता चिद् रूप.... सुज्ञानी.... ज्ञेय अनेके हो ज्ञान-अनेकता, जल भाजन रवि जेम सुज्ञानी.... द्रव्य-एकत्वपणे गुण-एकता, निज पद रमता हो खेम....सुज्ञानी.... पर क्षेत्रे गत ज्ञेयने जाणवे, पर क्षेत्रे थयुं ज्ञान सुज्ञानी.... __अस्तिपणु निज क्षेत्रे तुमे कह्यु, निर्मलता गुणमान.... सुज्ञानी.... ज्ञेय विनाशे हो ज्ञान विनश्वरु, काल प्रमाणे रे थाय सुज्ञानी.... स्वकाले करी स्व-सत्ता सदा, ते पर रीते न जाय सुज्ञानी.... पर भावे करी परता पामताँ, स्वसत्ता थिर ठाण सुज्ञानी.... आत्म-चतुष्कमयी परमां नहीं, तो किम सहुनो रे जाण सुज्ञानी.... अगुरुलघु निज गुणने देखतां, द्रव्य सकल देखंत सुज्ञानी.... साधारण-गुणनो साधर्म्यता, दर्पण जलने दृष्टांत.... सुज्ञानी.... श्री पारसजिन पारस-रस समो, पण इहां पारस नाही सुज्ञानी.... पूरण रसियो हो निज गुण परसन्नो, आनन्दघन मुज मांही.... सुज्ञानी.... चेतन, पार्श्वनाथ को पारसनाथ भी कहते हैं। और पारस का अर्थ 'पारसमणि' भी होता है। पारसमणि के लिये कहते हैं कि यदि उसका स्पर्श लोहे को होता है, तो लोहा सोना बन जाता है! ऐसी कोई तात्कालिक रासायनिक प्रक्रिया घटती होगी! इस बात को लेकर योगीराज श्री आनन्दघनजी, भगवान् पार्श्वनाथ की स्तवना का प्रारंभ करते हैं : ध्रुवपद रामी! हो स्वामी! माहरा, निष्कामी गुणराय! ध्रुव का अर्थ होता है स्थिर। और पद यानी अवस्था। स्थिर अवस्था में [मोक्ष में] रमणता करनेवाले, किसी भी कामना से रहित और गुणों के राजा ऐसे हे मेरे स्वामी! जो अपने आत्मगुणों का प्राकट्य करने का इच्छुक है, वैसा मनुष्य आपको पाकर ध्रुवपद में आराम [रमणता] करनेवाला बन जाता है। आपकी पूर्ण चेतना का संस्पर्श जीवात्मा को हो जाना चाहिए! बस, वह भी शुद्ध सोने जैसा विशुद्ध बन जाता है, इसमें तनिक भी संदेह नहीं। पार्श्वनाथ का संस्पर्श उस जीवात्मा को होता है, जिसने पार्श्वनाथ से निष्काम प्रीति बाँधी होती है। For Private And Personal Use Only
SR No.009635
Book TitleMagar Sacha Kaun Batave
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size2 MB
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