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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७३ पत्र २१ । । । । । । । । । । । । । । । । । । । । । । । । । । । । । । ० सांख्यदर्शन मानता है-'विगुण आत्मा न बंधती है, न मुक्त होती है। आत्मा कमलपत्रवत् निर्लेप है।' ० वेदान्तदर्शन मानता है-'आत्मा नित्य है।' ० बौद्धदर्शन मानता है-'आत्मा क्षणिक है।' ० चार्वाकदर्शन मानता है-'आत्मा, चार भूतों से अतिरिक्त है ही नहीं।' ० जिसको आत्मा का शुद्ध स्वरूप पाना है, जिसको चित्तसमाधि पाना है, उनको भिन्न-भिन्न मतों की बातों में उलझना नहीं है। दुनिया को भूलना है, आत्मध्यान में डूबना है। ० 'द्रव्यदृष्टि से आत्मा नित्य है, पर्यायदृष्टि में आत्मा अनित्य है', यह विवेक धारण कर, मुमुक्षु को आत्मध्यान में लीनता प्राप्त करनी चाहिए। । । । । । । । । । । । । । । । । । । । । । । । । । । । । । । पत्र : २१ स्वामी स्तवना प्रिय चेतन, धर्मलाभ! तेरा पत्र मिला, आनन्द! जिनको अपने हृदयमंदिर में बिराजित करते हैं और जिनकी आराधनाउपासना करनी है, जिनका सहारा लेकर आत्मा का विशुद्धीकरण करना है, उन परमात्मा का वास्तविक स्वरूप तो हमें ज्ञात होना ही चाहिये। श्री मल्लिनाथ भगवंत की स्तवना में कवि ने कितना अच्छा स्वरूपदर्शन करवाया! आस्तिकदर्शन सभी परमात्मा का अस्तित्व तो मानते ही हैं, परंतु स्वरूपदर्शन में भिन्नता है। वैसे, आत्मा का अस्तित्व तो चार्वाकदर्शन के अलावा सभी भारतीयदर्शन मानते हैं, परंतु आत्मस्वरूप की मान्यता में भिन्नता है। भगवान् मुनिसुव्रतस्वामी की स्तवना के माध्यम से कवि ने भारतीयदर्शनों के आत्मविषयक मन्तव्य प्रामाणिक ढंग से बताई है और उन मान्यताओं की अपूर्णता भी बता दी है। अंत में, इन मतभेदों से परे रह कर आत्मध्यान करने की प्रेरणा दी है। For Private And Personal Use Only
SR No.009635
Book TitleMagar Sacha Kaun Batave
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size2 MB
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