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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पत्र १७ १३३ शान्तिजिन! एक मुज विनती, सुणो त्रिभुवन-राय रे.... शान्ति स्वरूप किम जाणिये? कहो मन किम परखाय रे....शान्ति० १ धन्य तूं आतमा, जेहने, एहवो प्रश्न अवकाश रे.... धीरज मन धरी सांभलो, कहुं शान्ति-प्रतिभास रे.... शान्ति० २ भाव अविशुद्ध सुविशुद्ध, जे कह्या, जिनवर-देव रे.... 'ते तिम' अवितथ सद्दहे, प्रथम ए शान्तिपद सेव रे.... शान्ति० ३ आगमधर गुरु समकिती, किरिया संवरसार रे.... संप्रदायी अवंचक सदा, शुचि अनुभवाधार रे.... शान्ति० ४ शुद्ध आलंबन आदरे, तजी अवर जंजाल रे.... तामसी-वृत्ति सवि परिहरे, भजे सात्त्विक शाल रे.... शान्ति० ५ फल-विसंवाद जेहमां नहीं, शब्द ते अर्थ संबंधी रे.... सकल नयवाद व्यापी रह्यो, ते शिवसाधन-संधि रे.... शान्ति० ६ विधि-प्रतिषेध करी आतमा, पदारथ अविरोध रे.... ग्रहणविधि महाजने परिग्रह्यो, इस्यो आगमे बोध रे.... शान्ति० ७ दुष्टजन-संगति परिहरी, भजे सुगुरु-संतान रे.... जोग सामर्थ्य चित्त भाव जे, धरे मुगति-निदान रे.... शान्ति० ८ मान-अपमान चित्त सम गणे, सम गणे कनक-पाषाण रे.... वन्दक-निन्दक सम गणे, इश्यो होय तू जाण रे.... शान्ति० ९ सर्व जगजंतु ने सम गणे, सम गणे तृण-मणि भाव रे.... मुक्ति-संसार बिहु सम गणे, मुणे भव-जलनिधि-नाव रे....शान्ति० १० आपणो आतमभाव जे एक चेतनाऽऽधार रे..... __ अवर सवि साथ-संयोगथी, एह निज-परिकर सार रे.... शान्ति० ११ प्रभु-मुखथी एम सांभली, कहे आतमराम रे.... ताहरे दरिशने निस्तों , मुज सीधां सवि काम रे.... शान्ति० १२ अहो अहो हुं मुज ने कहुं-'नमो मुज, नमो मुज रे'.... अमित फलदान दातारनी, जेहने भेट थई तुज रे.... शान्ति० १३ For Private And Personal Use Only
SR No.009635
Book TitleMagar Sacha Kaun Batave
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size2 MB
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