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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२४ पत्र १६ धर्म जिनेश्वर ! गाउं रंगशुं, भंग म पडशो हो प्रीत... जिनेश्वर. बीजो मनमन्दिर आणुं नहीं, ए अम कुलवट रीत... जिने. १ 'धरम धरम' करतो जग सह फिरे, धरम न जाणे हो मर्म... जिने. धरम जिनेश्वर-चरण ग्रह्या पछी, कोई न बांधे हो कर्म... जिने. २ प्रवचन-अंजन जो सद्गुरु करे, देखे परम निधान... जिने. हृदयनयण निहाले जगधणी, महिमा मेरु समान... जिने. ३ दोडत दोडत दोडत दोडीयो, जेती मननी रे दोड़... जिने. प्रेम-प्रतीत विचारो ढुंकडी, गुरुगम लेजो रे जोड़... जिने. ४ एकपखी केम प्रीति परवडे, उभय मिल्या होय संधि... जिने. हुं रागी, हुं मोहे फंदियो, तूं नीरागी निरबंध... जिने. ५ परम निधान प्रगट मुख आगले, जगत उल्लंघी हो जाय... जिने. ज्योति विना जुओ जगदीशनी, अंधोअंध पलाय.... जिने. ६ निर्मल गुणमति-रोहण भूधरा, मुनिजन-मानस हंस.... जिने. धन्य ते नगरी धन्य वेला घडी, मात-पिता-कुल-वंश.... जिने. ७ मनमधुकर-वर कर जोडी कहे, पदकजनिकट निवास.... जिने. घननामो आनन्दघन सांभलो, ए सेवक अरदास.... जिने. ८ हे धर्मनाथ भगवंत! मैं रसपूर्ण हृदय से [रंगशुं] आपके गीत गाता हूँ। आपके साथ मेरे हृदय ने प्रीति बाँध ली है। हे नाथ, अब यह प्रीति टूटनी नहीं चाहिए। आपको निभानी है, मेरी प्रीति। आप विश्वास करना कि आपके अलावा दूसरा कोई भी देव मेरे मनमंदिर में आयेगा नहीं। बीजो मनमन्दिर आणुं नहीं, ए अम कुलवट रीत! __ आनन्दघनजी का कुल योगीकुल था न! योगियों के कुल की यह परंपरा होती है कि हृदयमंदिर में एक बार जिसको प्रतिष्ठित किया, उसका उत्थापन कर, दूसरे की प्रतिष्ठा नहीं की जाती। इसको कुल की खानदानी कहते हैं। आनन्दघनजी कहते हैं कि 'मैं उस खानदानी को निभाऊँगा।' 'धर्मनाथ' शब्द में से 'धर्म' को लेकर कविराज, धर्म के ठेकेदारों को लताड़ते हुए कहते हैं For Private And Personal Use Only
SR No.009635
Book TitleMagar Sacha Kaun Batave
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size2 MB
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