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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra पत्र १५ www.kobatirth.org ११४ │││││││││ ││││││││││││││││| | | o प्रीति परमात्मा का स्मरण और दर्शन करवाती है। प्रीति परमात्मा का स्पर्शन करवाती है और प्रीति ही परमात्मा की आज्ञा का पालन करने के लिये प्रेरित करती है। • परमात्मप्रेमी के लिए आज्ञापालन मुश्किल नहीं होता है। ● जिसमें जिनाज्ञा की उपेक्षा हो, वैसा कोई भी मार्ग सही नहीं है । o जिनाज्ञा के साथ जिस व्यवहार का कोई संबंध न हो, वैसा व्यवहार जिनशासन में मान्य नहीं है। Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ● आगम-वचनों के अर्थ, भवभीरु और जिनशासन के प्रति निष्ठावाले बहुश्रुत गुरुजनों से प्राप्त करने चाहिए। ● उत्सूत्रभाषण तो सभी पापों से बढ़कर पाप है। ││││││││││| │││││││││││ पत्र : १५ प्रिय चेतन, धर्मलाभ! श्री अनंतनाथ स्तवना तेरा पत्र मिला, आनन्द ! श्री विमलनाथ भगवंत की स्तवना में तुझे 'साहिब! समरथ तूं धणी रे, पाम्यो परम - उदार, मन - विरामी वालहो रे, आतम चो आधार .... ' ये पंक्तियाँ हृदयस्पर्शी लगी, जानकर खुशी हुई। इन पंक्तियों के ऊपर तू ज्यों-ज्यों चिंतन करता जायेगा, त्यों-त्यों परमात्मा की शक्ति के प्रति, सामर्थ्य के प्रति तेरी श्रद्धा बढ़ती जायेगी । परमात्मा के अचिन्त्य प्रभावों की कभी-कभी तुझे अनुभूति होने लगेगी। चेतन, श्री अनन्तनाथ भगवंत की इस स्तवना में श्री आनन्दघनजी ने, अपने परम प्रियतम परमात्मा की आज्ञाओं के पालन के विषय में बहुत कुछ कहा है। काफी मार्मिक ढंग से कहा है । For Private And Personal Use Only
SR No.009635
Book TitleMagar Sacha Kaun Batave
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size2 MB
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