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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पत्र १३ १०१ सुख-दुःख की भोक्ता आत्मा नहीं होती है। कर्मजन्य अशुद्ध अवस्था में ही आत्मा सुख-दुःख की भोक्ता होती है। परन्तु दोनों अवस्थाएँ [शुद्ध और अशुद्ध] होती है, आत्मा की ही। इसलिए कहा जा सकता है कि : ० आत्मा सुख-दुःख की भोक्ता है, ० आत्मा मात्र आनन्द की ही भोक्ता है। आत्मा को 'सांख्यदर्शन' ने कूटस्थ नित्य कहा है, जो कि कूटस्थ नित्य नहीं है, परन्तु परिवर्तनशील है, यह बात करते हैंपरिणामी चेतन परिणामो, ज्ञान-कर्मफल भावि रे.... चेतन, आत्मा परिणामी है। आत्मा की अवस्थाएँ परिवर्तनशील हैं। वह परिवर्तन ज्ञानरूप होता है, कर्मरूप होता है.... और भविष्यकालीन अनेक कर्म फलरूप होता है। कभी आत्मा अल्पज्ञ कहलाती है, कभी वही आत्मा सर्वज्ञ कहलाती है.... तो कभी अज्ञानी कहलाती है। कभी एक आत्मा सुखी कहलाती है, कभी वही आत्मा दुःखी कहलाती है....। कभी एक आत्मा सुरूप कहलाती है, वही आत्मा कभी कुरूप कहलाती है। ज्ञान एवं कर्मफल के माध्यम से आत्मा को भिन्न-भिन्न नाम से व रूप से पुकारा जाता है-यह बात योगीराज करते हैंज्ञान कर्मफल चेतन कहिए, लेजो तेह मनावी रे.... निश्चय नय से यह बात नहीं की जा रही है, यह बात व्यवहार नय से की जा रही है। कर्मजन्य पर्यायों के माध्यम से आत्मा के साथ व्यवहार किया जाता है। निश्चय नय से तो आत्मा सर्वज्ञ है, परन्तु व्यवहार नय से आत्मा को अल्पज्ञ, अज्ञानी, विशेषज्ञ.... वगैरह कहा जाता है। निश्चय नय से आत्मा अरूपी है, परन्तु व्यवहार नय से आत्मा को सुरूप, कुरूप वगैरह कहा जाता है। हालाँकि सुरूपता या कुरुपता कर्मजन्य है, फिर भी आत्मा के ही कर्मों का फल होने से आत्मा को सुरूप.... कुरूप कहा जाता है। व्यवहार नय तो मानता है कि आत्मा ही कर्म बाँधती है और आत्मा ही कर्मफल भोगती है। परस्पर सापेक्ष दोनों नयों की मान्यता स्वीकार्य होती है। निश्चय नय और व्यवहार नय, दोनों हमें मान्य करने के हैं। आतमज्ञानी श्रमण कहावे, बीजा तो द्रव्यलिंगी रे.... जो श्रमण हैं, साधु हैं, मुनि हैं, वे आत्मज्ञानी होने चाहिए। उनको आत्मज्ञान इस प्रकार नयों की अपेक्षा से होना चाहिए। जो इस प्रकार For Private And Personal Use Only
SR No.009635
Book TitleMagar Sacha Kaun Batave
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size2 MB
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