SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 101
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पत्र १२ श्री श्रेयांसजिन! अन्तरजामी! आतमरामी नामी रे, अध्यातममत पूरण पामी, सहज मुगति-गति गामी रे...१ सयल संसारी इन्द्रियरामी, मुनिगण आतमरामी रे, मुख्यपणे जे आतमरामी, ते केवल नि:कामी रे...२ निज स्वरुप जे किरिया साधे, ते अध्यातम लहिये रे, जे किरिया करी चउ गति साधे, ते न अध्यातम कहिए रे...३ नाम अध्यातम, ठवण अध्यातम, द्रव्य अध्यातम छंडो रे, भाव अध्यातम निज गुण साधे, तेहसं रढ मंडो रे...४ शब्द अध्यातम अर्थ सुणीने, निर्विकल्प आदरजो रे, शब्द अध्यातम भजना जाणी, हान-ग्रहण मति धरजो रे...५ अध्यातम जे वस्तु विचारी, बीजा जाण लबासी रे, वस्तु गते जे वस्तु प्रकाशे, आनन्दघन मत वासी रे...६ 'हे श्रेयांसनाथ भगवंत! आप सकल जीवसृष्टि के अन्तर्यामी हैं। आप से कुछ भी छिपा हुआ नहीं है, हमारा आन्तर-बाह्य | आप आत्मभाव में ही लीन होते हैं और आपका नाम विश्व में सर्वविदित है। हे नाथ, आपने पूर्णरूप से अध्यात्म ज्ञान को पाया और इसी वजह से आपने सहजता से मुक्ति पायी है। आपको कोई विशेष पुरुषार्थ नहीं करना पड़ा है, मुक्ति पाने के लिए।' परमात्मा १. अन्तर्यामी हैं, २. आत्मलीन हैं, ३. प्रसिद्ध हैं, ४. पूर्ण अध्यात्मी हैं और ५. सहजता से मुक्ति पाये हुए हैं | परमात्मा की इस प्रकार स्तवना कर, कौन परमात्मा के मार्ग पर चल सकता है और कौन नहीं चल सकता है, यह बात बताते हैं'सयल संसारी इन्द्रियरामी' जो जीव संसारी होते हैं, यानी कषायपरवश और इन्द्रियपरवश होते हैं...वे 'आत्मा' को समझ ही नहीं पाते हैं। 'मैं आत्मा हूँ' ऐसा विचार भी नहीं आता है उनको। पाँच इन्द्रियों के वैषयिक सुखों में ही उनकी रमणता होती रहती है। इन्द्रिय-रामी मनुष्य के लिए अध्यात्म का मार्ग होता ही नहीं है। वैषयिक सुखों में लीन मनुष्य आत्मभाव में लीन नहीं हो सकता हैं। For Private And Personal Use Only
SR No.009635
Book TitleMagar Sacha Kaun Batave
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy